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Tag Archives: लोक संस्कृति

तीजा तिहार का ऐतिहासिक-सामाजिक अनुशीलन

लोक परम्पराएं गौरवशाली इतिहास की पावन स्मृतियाँ होती हैं, जो काल सापेक्ष भी हैं। वर्तमान छत्तीसगढ़ विविधताओं से परिपूर्ण भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का संगम क्षेत्र रहा है इसलिए यहाँ की परम्पराओं में चहूँ ओर की छाप दिखाई देती है। वैष्णव परंपरा में वर्षा ऋतु (आषाढ़, सावन, भादो, कुंआर) को …

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छत्तीसगढ़ का लोक साहित्य एवं वाचिक परम्परा

छत्तीसगढ़ नवोदित राज्य है। किन्तु हाँ की लोक संस्कृति अति प्राचीन है। यहाँ बोली जाने वाली भाषा छत्तीसगढ़ी है, जो अपनी मधुरता और सरलता के लिए जग विदित है। अर्द्ध मागधी अपभ्रंश से विकसीत पूर्वी हिन्दी की एक समृद्ध बोली है छत्तीसगढ़ी, जो अब भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो …

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लोक संबंधों की आत्मा: झेंझरी

मानव जगत में मानवीय संबंधों के जुड़ाव से परिवार और समाज की रचना होती है। आदिम काल से लेकर निरन्तर यह जुड़ाव गतिशील रहा है। मनुष्य के इसी जुड़ाव और संबंध से परिवार और समाज की रचना हुई है। मनुष्य के इसी जुड़ाव और संबंध से मानवीय रिश्तों की बुनियाद …

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लोकगीतों में राम और रामायण के पात्र

लोगों के कंठ में लोकगीत समाहित रहते है, जो साहित्य की एक विधा है। हर एक भाषा के अपने लोकगीत है जो ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं द्वारा विशेष अवसर पर गाये जाते है। जिसका अपना एक विशेष महत्व होता है, श्रीराम ऐसे महान विभुति है जिनके व्यक्तितव से सारा संसार …

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दक्षिण कोसल का पारम्परिक भित्ति चित्र सुलो कुठी

मानव मन की अभिव्यक्ति का एक प्राचीन माध्यम भित्ति चित्र हैं, जो आदि मानव की गुफ़ा कंदराओं से लेकर वर्तमान में गांव की भित्तियों में पाये जाते हैं। इन भित्ति चित्रों में तत्कालीन मानव की दैनिक चर्या एवं सामाजिक अवस्था का चित्रण दिखाई देता है। वर्तमान में भित्ति में देवी-देवताओं …

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नाचा : छत्तीसगढ़ का लोकनाट्य

छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठ भूमि मुख्यतः यहाँ का ग्रामीण जनजीवन है ।यहाँ की ग्रामीण संस्कृति में लोकनाटकों का प्रारंभ से ही बड़ा महत्व रहा है । छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक सौम्यता के दर्शन यहाँ के देहातों की नाट्य मण्डलियों के सीधे -सादे ,आडम्बरहीन परन्तु रोचक कार्यक्रमों में होते हैं। …

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संतान की दीर्घायु की कामना का पर्व हलषष्ठी

लोक में संतान की रक्षा के लिए, पति की रक्षा के लिए पर्व मनाने का प्रचलन है। परन्तु कमरछठ पर्व में माताओं द्वारा संतान की दीर्घायु के लिए व्रत (उपवास) किया जाता है। हमारे छत्तीसगढ़ राज्य की अनूठी संस्कृति का यह एक ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग, हर जाति …

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क्या आप जानते हैं तंत्र-मंत्र से गांव कब क्यों और कैसे बांधा जाता है?

सावन माह लगते ही सवनाही तिहार मनाने का समय आ गया। सावन के पहले रविवार से गाँव-गाँव में सवनाही मनाने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। इस दौरान ग्रामवासी गाँव एवं खार (खेत) में स्थिति समस्त देवी-देवताओं की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते हैं, जिससे गाँव में …

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बस्तर का गोंचा महापर्व : रथ दूज विशेष

बस्तर अंचल में रथयात्रा उत्सव का श्रीगणेश चालुक्य राजवंश के महाराजा पुरूषोत्तम देव की जगन्नाथपुरी यात्रा के पश्चात् हुआ। लोकमतानुसार ओड़िसा में सर्वप्रथम राजा इन्द्रद्युम्न ने रथयात्रा प्रारंभ की थी, उनकी पत्नी का नाम ‘गुण्डिचा’ था। ओड़िसा में गुण्डिचा कहा जाने वाला यह पर्व कालान्तर में परिवर्तन के साथ बस्तर …

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कोण्डागाँव का मावली मेला, जहाँ एकत्रित होते हैं देवी-देवता

नारायणपुर मड़ई के पश्चात कोण्डागांव का प्रसिद्ध मावली मेला कल प्रारंभ हुआ, यह मेला होली के एक सप्ताह पूर्व भरता है। फ़ागुन माह में आयोजित होने वाले इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ कई परगनों के देवी देवता इकट्ठे होते हैं। मेले का अर्थ ही सम्मिलन होता है, …

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