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Tag Archives: ललित शर्मा

छत्तीसगढ़ की अजब-गजब होली एवं प्राचीन परम्पराएँ

छत्तीसगढ़ अंचल में जब नगाड़े बजने की आवाज फ़ाग गायन के साथ गांव-गांव, शहर-शहर, डगर-डगर से रात के अंधेरे में सन्नाटे को तोड़ती हुई सुनाई दे लगे तो जान लो कि फ़ागुन आ गया। वातावरण में एक विशेष खुश्बू होती है जो मदमस्त कर देती है, महावृक्षों से धरा पर …

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कोण्डागाँव का मावली मेला, जहाँ एकत्रित होते हैं देवी-देवता

नारायणपुर मड़ई के पश्चात कोण्डागांव का प्रसिद्ध मावली मेला कल प्रारंभ हुआ, यह मेला होली के एक सप्ताह पूर्व भरता है। फ़ागुन माह में आयोजित होने वाले इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ कई परगनों के देवी देवता इकट्ठे होते हैं। मेले का अर्थ ही सम्मिलन होता है, …

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भ्रमर प्रत्यंचा पर धरे जब पलाश के वाण

वसंत का मौसम हो तथा पलाश की चर्चा न हो, ये नहीं हो सकता। यह समय छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक के वनों में पलाश के फ़ूलने का होता है, ऐसे लगता है कि जंगल में आग लगी हो, जंगल में आग जब चहूँ दिसि लगी हो तो …

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जानिए क्या है संदेश भेजने एवं उत्साह प्रकट करने का प्राचीन यंत्र

टेसू के फ़ूलों एवं नगाड़ों का चोली-दामन का साथ है, जब टेसू फ़ूलते हैं तो अमराई में बौरा जाती है और नगाड़े बजने लगते हैं। पतझड़ का मौसम होने के कारण पहाड़ों पर टेसू के फ़ूल ऐसे दिखाई देते हैं जानो पहाड़ में आग लग गई हो। विरही नायिका के …

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पांच पैर वाला सुअर एवं सोनई डोंगर के योद्धा भाई

कथा कहानियों में से इतिहास निकल कर सामने आता है। एक बार की बात है, पलासिनी (जोंक) नदी के किनारे डूंडी शाह एवं कोंहंगी शाह नामक भाईयों ने आठ एकड़ भूमि पर चने की फ़सल उगाई थी। इस फ़सल को कोई जानवर रात्रि में आकर नष्ट कर जाता था। भाईयों …

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त्रिवेणी तीर्थ का राजिम कुंभ अब पुन्नी मेला

माघ पूर्णिमा को मेले तो बहुत सारे भरते हैं, परन्तु राजिम मेले का अलग ही महत्व है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है, यहाँ पैरी, सोंढूर एवं महानदी मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ तीन नदियों का संगम होता वह स्थान तीर्थ की …

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क्या बस्तर की वनवासी संस्कृति में पुनर्जन्म को मान्यता है?

बस्तर के वनवासियों की पहचान उनकी अद्भुत अलौकिक संस्कृति और मान्य परम्परायें हैं। जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होकर यहाँ तक पहुँची है। भारतीय दर्शन की तरह आदिवासी समाज की भी मान्यता है कि पुनर्जन्म होता है। मृत्यु, सत्य और अटल है, जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु होती है। …

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कौन थे वे जिन्होंने मूर्तिपूजा प्रारंभ की एवं पूजा पद्धति का विकास कब हुआ?

विश्व में विभिन्न धर्मावलम्बी निवास करते हैं, सब निज धर्म का पालन करते हैं। ये धर्मावलम्बी दो भागों में बंटे हैं साकार और निराकार। साकार माने मूर्ति पूजक एवं निराकार माने प्रकृति पूजक। हमेशा विवाद इन दोनों में ही होते रहता है। लोगों में मन में जिज्ञासा यह रहती है …

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ऐसा प्राचीन यंत्र जिसका प्रयोग वर्तमान में भी हो रहा है

सभ्यता के विकास के क्रम में मनुष्य ने आवश्यतानुसार जीवन एवं दैनिक कार्यों को सरल एवं सहज बनाने के लिए यंत्रों एवं उपस्करों का निर्माण किया। जैसे-जैसे आवश्यकता हुई एवं समझ विकसित हुई यंत्रों का अविष्कार हुआ। पुराविद कहते हैं कि गाड़ी के पहिये से पहले कुम्हार के चाक के …

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देखिए हिंगलाज देवी की भादो जात्रा (वीडियो)

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की केशकाल घाटी के नीचे बीहड़ वन में गौरगांव से 6 किमी की दूरी पर हिंगलाज माता का स्थान है। यहाँ प्रतिवर्ष भादो जात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें 56 गांव के सोरी कुल के आदिवासी भाग लेते हैं। देवी हिंगलाज पौराणिक परम्परा से आती …

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