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सुअरलोट के शैलचित्र : क्या सीता हरण यहीं हुआ था?

छत्तीसगढ़ राज्य अपनी पुरातात्विक सम्पदाओं के लिए गर्व कर सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा कोई भी स्थल नहीं है, जहाँ पुरासम्पदा न हो। जैसे-जैसे इनकी खोज आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे ही नये-नये तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं। यहाँ सभ्यता के विकास से पूर्व की भी गाथाएँ हैं तो ऐतिहासिक युग से आधुनिक युग तक भी। इन्हीं खोजों में से एक खोज कोरबा जिले के वनांचल क्षेत्र सुअरलोट की शैलचित्रों की अमरगाथा है।

कोरबा जिले के करतला विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत खुंटाकुड़ा के धवांईभांठा मोहल्ले में अवस्थित सुअरलोट की पहाड़ी में दिनांक 8 नवम्बर, 2012 को भ्रमण के दौरान मुझे लगभग 2000 से 2200 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक शैलाश्रय मिला। जहाँ पहुँचना अत्यंत दुरूह, पहाड़ी होने और अत्यंत सघन वन होने के कारण यह श्रमसाध्य एवं कष्टदायक भी है। यहाँ कई बार आने के बाद भी जब पुनः जायेंगे तो भी यह स्थल बड़ी मुश्किल से ही मिल पाता है। इसका कारण यहाँ भूलभूलैया युक्त चट्टानों का समूह है। यहाँ पहुँचने के दो रास्ते हैं जिनमें सरल, जाँजगीर-चाँपा जिले का रैनखोल वाला रास्ता है।

दूल्हा-दूल्ही

22010‘19‘‘ उत्तरी अक्षांस 82053‘14‘‘ पूर्वी देशांतर

यह शैलाश्रय प्राकृतिक रूप से निर्मित है, जो लगभग 12 मीटर लम्बा है। जिसमें दो मानव आकृतियों का अंकन मोटे ब्रश एवं गेरूरंग से किया गया है जिनके दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं। इसमें प्रथम की की ऊँचाई 35 सेमी एवं दूसरे की ऊँचाई 25 सेमी है तथा दोनों की संयुक्त चौड़ाई 25 सेमी है।

इसकी बनावट के आधार पर इस जगह को पूजा स्थल के रूप में चिन्हीत किया जा सकता है। आदिमानव इस प्रकार की आकृति ऊपर वाले (भगवान) के प्रति आस्था रखने के लिए बनाते हैं। इसे ग्रामीण ‘‘दूल्हा-दूल्ही’’ कहते हैं।

इसके समीप ही एक अन्य मानवाकृति (महिला) एवं एक जानवर (हिरणनुमा) का चित्रण किया गया है जो अत्यधिक धुमिल हो चुका है। स्थानीय लोग इसे दुल्हा-दुल्ही पहाड़ कहते हैं। जो इन्हीं दो आकृतियों के नाम से जान पड़ता है। शैलाश्रय में निर्मित चित्र भद्दी बनावट का है और बनावट के आधार पर इनकी संभावित तिथि लगभग प्रारंभिक इतिहास काल की मानी गई है।

सीता चैकी

22010‘17‘‘ उत्तरी अक्षांस 82054‘29‘‘ पूर्वी देशांतर

इसी बीच दिनांक 22 मई 2013 को दूसरी बार मैंने और भी शैलचित्रों की मिलने की प्रत्याशा में दुल्हा-दुल्ही’ पहाड़ से लगभग 3 किमी दूरी पर सीता चैकी नामक पहाड़ी शैलाश्रय का भ्रमण किया जिसमें मुझे पुनः प्रारंभिक इतिहास काल का एक और शैलचित्र प्राप्त हुआ। यह शैलाश्रय भी प्राकृतिक रूप से निर्मित है पर जिस भाग में शैलचित्र की रचना की गई है उसे नाव नुमा आकृति में अंकित किया गया है ताकि शैलचित्र को बारिश से बचाया जा सके। तत्पश्चात ही शैलचित्र की रचना की गई है। जितने भाग में चित्रण किया गया है, उसका माप 175 सेमी लम्बा एवं 95 सेमी ऊँचा है। इसमें दो चित्रण ज्यामितिय प्रकार के है, जिनकी रचना एक दूसरे को काटती हुई गेरू रंग की रेखाओं से की गई है।

भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के श्री भागीरथी गड़तिया जी एवं डॉ.शम्भूनाथ यादव जी, सहायक पुरातत्वविद् द्वारा दिनांक 09.07.2013 को उक्त शैलचित्रों का निरीक्षण कर उन्हें प्रारंभिक इतिहास काल का मानते हुए उन्हें ज्यामितिय चित्रण माना है आगे उन्होंने लिखा है कि इसमें दो चित्रण ज्यामितिय प्रकार के हैं जिनका निर्माण एक दूसरे को काटते हुए गेरू रंग की रेखाओं से किया गया है। इस ज्यामितिय चित्रण के बाँये पार्श्व में नीचे-ऊपर एक हिरण युग्म का चित्रण गेरू रंग से किया गया है जो चलायमान मुद्रा में है तथा दाँये पार्श्व में एक वर्ग के अंदर सांकेतिक वायुयान जैसा चित्रण अंकित है जिसे स्थानीय लोग पुष्पक विमान कहते हैं। बनावट एवं विषय वस्तु के आधार पर इनकी सम्भावित तिथि लगभग प्रारंभिक इतिहास काल की मानी जा सकती है।

डॉ. जी.एल.बादाम जी द्वारा भी इसे महत्वपूर्ण मानते हुए पहली बार विमान की अवधारणा को स्वीकार किया है (शुक्रवार 31 मई, 2013, रात्रि 10ः32 बजे)। स्व. श्री प्यारेलाल गुप्त जी द्वारा लिखित ऋषभतीर्थ’ पृष्ठ 14 में क्या ऋषभतीर्थ क्षेत्र में सीता-हरण हुआ था? में अपना अभिमत व्यक्त किया था। इसी पुस्तक में इतिहासकार और पुरातत्वज्ञ स्व. रायबहादुर हीरालाल ने भी अमरकंटक पहाड़ तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र में रावण की लंका होने की बात कही है और उन्होंने राम के वनवास के दौरान सीताहरण इसी ऋषभतीर्थ क्षेत्र से होना बताया है, उन्होंने तर्क देते हुये लिखा है कि ऋषभतीर्थ तीन लम्बी पर्वत श्रेणियों के संगम पर है। जहाँ एक अखण्ड जलराधि का कुण्ड है जिसमें पर्वतीय निर्झरणी का एक जल राशि एकत्र होता है। जो आगे चलकर एक साधारण झरना का रूप धारण कर लेता है जिसे स्थानीय ‘दमऊ-दहरा कहते हैं।

उस स्थान की प्राकृतिक छवि का सौंदर्य तथा वन पर्वतों का समूह एक अलग ही स्थान रखता है। यहाँ से तीन मील उत्तर की ओर जाने पर काल वराहकल्प’ का राम आश्रम पंचवटी है। राम आश्रम पंचवटी से 5 मील दूर गृद्धराज जटायु का आश्रम था जिसे गृद्धराज पहाड़ कहते हैं तथा उत्तर की ओर आधा मील पर ही उमा-शिव का आश्रम है। इसी के पास कुम्भज ऋषि का आश्रम है जिसे कुम्हरा पहाड़ कहा जाता है। यहाँ से पश्चिम में 3 मील पर सीता खोलिया (सीता आश्रम) तथा 10 मील पर सूर्पणखा का आश्रम बताया जाता है।

दक्षिण में आधा मील पर रावण खोल है जहाँ मारीच से मिलकर रावण ने शड्यंत्र रचा था और उसे स्वर्णमृग बनने निर्देश दिया था, जिससे वह सीताहरण कर सके। मारीच का स्थान रैन खोल कहलाता है। यहाँ से 34 मील दूर खरदूषण आदि राक्षसों का निवास स्थल था, जो इस समय खरौद के नाम से प्रसिद्ध है। आग्नेय दिशा में पंचवटी से चार मील पर राम झरोखा है जिसे अब रामझोझा कहते हैं। यहाँ रामपद चिन्ह शिलाखंड पर उत्कीर्ण है। इस प्रकार श्रीराम जी के वनवास के अनेक स्थल यहाँ पर मौजूद है। इन स्थानों की पवित्रता और प्राकृतिक सौंदर्य आज भी अक्षुण्ण है। यहाँ आसपास अनेक स्थानों पर ऋषि-मुनियों की आश्रम पाये जाते हैं।

रामायण के कथानक के आधार पर भगवान राम की माता शबरी से भेंट सीता हरण के पश्चात् हुई है, कुछ विद्वानों द्वारा जाँजगीर-चाँपा जिले के शिवरीनारायण को ही माता शबरी से भगवान राम का मिलन स्थल मानते हैं। खरौद को खर और दुषण की नगरी मानते हैं। तो निश्चय ही शिवरीनारायण के पहले ही पंचवटी होना चाहिए और तथ्यों के आधार पर यदि प्राचीनकाल में आदिमानवों द्वारा वास्तविक चित्रों की बनाए जाने की अवधारणा है तो इस आधार पर निश्चय ही कोरबा और जाँजगीर-चाँपा जिले के बीच आधा-आधा बँटा यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

मेरा मानना है कि कोरबा जिले की सुअरलोट पहाड़ी पर स्थित सीता चैकी की शैलचित्र की शीर्षक ‘‘सीताहरण’’ होना चाहिए। अब इसे ध्यान से देखने और विचारने की आवश्यकता है, सबसे पहले रावण का मारीच से मिलना और उन्हें हिरण बनने कहना, हिरण बनकर पंचवटी के पास जाना, सीता का मृग देखना, पकड़ने राम से कहना, तत्पश्चात् लक्ष्मण को सीता द्वारा भेजा जाना, लक्ष्मण का रेखा खींचना, पंचवटी में रावण का प्रवेश और सीता का हाथ पकड़कर घसीटना और उन्हें विमान में बिठाकर लंका ले जाना आदि।

यहाँ के शैलचित्र चलायमान है इसकी पुष्टि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के श्री भागीरथी गड़तिया जी और डॉ शंभुनाथ यादव जी द्वारा पहले ही किया जा चुका है, और डॉ जी.एल. बादाम जी द्वारा भी पहली बार शैलचित्रों में विमान होने की अवधारणा को स्वीकार किया है।

पंचवटी आश्रम

रैनखोल के आस-पास ‘‘पहाड़गाँव’’ नामक स्थल पर पुरावषेश मिले हैं। दमऊदहरा के आस-पास घाटी में और झरने के दोनों किनारों पर प्रचुर मात्रा में पाषाण कालीन लघु उपकरण मिलते हैं। पहाड़ के ऊपर से देखने पर रैनखोल में हवाई पट्टी की तरह साफ मैदान आज भी दृष्टिगोचर होता है। दमऊदहरा के बाँये तट पर चट्टान में सातवाहन कालीन शिलालेख है। इसी के ऊपर में प्राचीन बसाहट है जिसमें रूद्रावतार लघु हनुमान की पाषाण प्रतिमा प्राप्त हुई है। यहाँ तक यह पहाड़ 30-40 किमी दूर तक रायगढ़ जिले के बोतलदा और कबरा पहाड़ की शैलाश्रयों से जुड़ जाता है, वहाँ भी कई शैलचित्र मिले हैं।

रैनखोल

            यहाँ तक महाभारत के वन पर्व में भी ऋषभतीर्थ (वृषभ तीर्थ) या ‘‘उषभतीत्थ’’ का वर्णन मिलता है। शोणस्य ज्योतिरष्यायाः संगमे नियतः शूचिः

तर्प पित्व्य पितृन देवानग्नि स्टोम फल लभेत।। 8।।

शोणस्य नर्मदोयाश्च प्रभु कुरूनंदन

वंष गुल्म उपस्पृष्य वाजिमेघ फलं जनेत ।। 9।।

ऋषभं तीर्थयासाद्य कोसलायां नराधिप

वाजपेयमवाप्नोति त्रिरात्रोपोषितो नरः ।। 10।।

गोहसस्त्रं फलम् विन्द्यात् कुलं चैव समुद्धरेत

कोसलां तु समासाद्य कालतीर्थमुस्पृषत्।। 11।। (8)

अर्थात् हे नरेश्वर, कोसल (दक्षिण कोसल) (प्राचीन छत्तीसगढ़) के ऋषभ तीर्थ में जाकर स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य वाजपेय यज्ञ करने का फल पाता है, इतना ही नहीं, वह सहस्त्र गोदान का फल पाता है और अपने कुल का भी उद्धार करता है। कोसल में जाकर कालतीर्थ में स्नान करें।

यही बातें तो यहाँ सातवाहन कालीन शिलालेख में श्री कुमार वरदत्त …. के लेख में भी लिखी गई है। यह पुरा क्षेत्र अतीत के इतिहास को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को सदैव से हस्तांतरित करते आ रहे है और इसी उपक्रम में यहाँ की शैलचित्र भी सदैव से मार्ग प्रशस्त करते रहे हैं।

दमउदहरा

तमाम तथ्यों के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि जाँजगीर-चाँपा जिले की रैनखोल स्थित पंचवटी ही रामायण में वर्णित पंचवटी है और यहीं से माता सीता का हरण हुआ है और इसी कारण कालान्तर में इन्हीं यादों को अक्षुण रखने के लिए कलाकार ने या किसी जानकार व्यक्ति के द्वारा इतिहास लिखने के लिए, उन्हें सुरक्षित करने के लिए यहाँ शैलचित्रों की रचना की है। अतः यह कहा जा सकता है कि कोरबा जिले में मिले शैलचित्र प्रारम्भिक इतिहासकाल का एक महाकाव्य का एक खण्ड है।

संदर्भ

1.         सर्वेक्षण रिपोर्ट – भारतीय पुरातत्व संरक्षण मण्डल रायपुर।

2.         सर्वेक्षण रिपोर्ट – भारतीय पुरातत्व संरक्षण मण्डल रायपुर।

3.         सर्वेक्षण रिपोर्ट – भारतीय पुरातत्व संरक्षण मण्डल रायपुर।

4.         विशेषज्ञ – श्री जी.एल.बादाम

5.         ऋषभतीर्थ एवं ऋषभ देव – श्री प्यारेलाल गुप्त जी पृष्ठ 4, 5

6.         ऋषभतीर्थ एवं ऋषभ देव – श्री प्यारेलाल गुप्त जी पृष्ठ 4, 5

7.         वाल्मिकी रामायण

8.         महाभारत वन पर्व

9.         ऋषभतीर्थ एवं ऋषभ देव – श्री प्यारेलाल गुप्त जी पृष्ठ 6

10.       प्रगति प्रतिवेदन – पश्चिम विभागीय पुरातत्व विभाग महामहोपध्याय वि.वि.मिराशी 1903-04

आलेख एवं छायाचित्र

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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3 comments

  1. अद्भुत जानकारी के लिए आपको साधुवाद

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