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पर्यावरण : प्रकृति के सानिध्य ने बचाए कैंसर से प्राण

जिन्दगी कैरमबोर्ड जैसी होती है, बोर्ड पर जमी हुई गोटियाँ मनुष्य के पारिवारिक सपने। जरा भी ठोकर लगी और सपने कैरम की गोटियों की मानिंद बिखर जाते हैं। बिरले ही होते हैं जो जीवन की गोटियों को फ़िर से जमाने की और नया खेल शुरु करने की हिम्मत जुटा पाते हैं।

हम आपसे ऐसे ही बिरले शख्स की मुलाकात करवा रहे हैं, जिन्होंने जीवन में आए भयानक झंझावातों का सामना किया तथा उससे विजय पाने का संघर्ष भी कर रहे हैं। ये  हैं रायपुर छत्तीसगढ़ के रहने वाले जुनैद वहाब खान। पेशे से मीडिया से जुड़े हुए थे। अब प्रकृति से जुड़े हुए हैं।

मैं इनकी चर्चा इसलिए करना चाहता हूँ कि 2015 में इन्हें सांस की शिकायत हुई, डॉक्टरों से सम्पर्क करने पर विभिन्न परिक्षणों के पश्चात ज्ञात हुआ कि इन्हें फ़ेफ़ड़े का कैंसर है। कैंसर ऐसा शब्द है जो खुद के लिए तथा प्रियजनों के लिए कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि यह रोग प्राण लेकर ही जाता है।

जुनैद ने जब सुना तो वे घबराए नहीं, डॉक्टर से इसका निदान पूछे। हैदराबाद के डॉक्टरों ने कहा कि आपको आपरेशन करवाना पड़ेगा तथा 12 से 15 कीमियो भी लेना होगा। इसके पश्चात एक डेढ़ साल तक जीवन चल सकता है। इन्होंने पूछा कि अगर यह सब न करुं तब कितने दिन जिन्दा रहुंगा। तो डॉक्टरों ने चार से छ: महीने का समय  दिया।

जुनैद हैदराबाद से लौट आए और उन्होंने इस बीमारी के कारण ढूंढने प्रारंभ किये तथा उनके परिजनों ने वैकल्पिक चिकित्सा तलाश करनी शुरु। आखिर में पाया यह कि पर्यावरण प्रदूषण एवं कुपथ्यपान इसके लिए जिम्मेदार है। तो उन्होंने प्रकृति की शरण ली, स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक खान-पान प्रारंभ किया।

इसके साथ ही तुलसी, अदरख, हल्दी, शहद जैसी पारम्परिक औषधियाँ भी लेनी शुरु की। उन्होंने  शहर से सौ किमी दूर जंगल में रहना प्रारंभ किया। हालत तो ठीक नहीं थी, परन्तु जुनैद ने आशा नहीं छोटी। फ़ेफ़ड़े को संचालित करने के लिए योग अनुलोम विलोम किया तथा ईश्वर का ध्यान लगाया।

जीवन जीने की उत्कट आकांक्षा, प्रकृति की अनुरुप भोजन, वन विहार एवं शुध्द आक्सीजन के सेवन ने इनके कैंसर को बढ़ने से रोक दिया। एक फ़ेफ़ड़ा जो पूरी तरह खत्म हो गया था, उसमें अनुलोम विलोम से स्पंदन का अहसास होने लगा।

मैने इनका साक्षात्कार 17 मार्च 2019 महानदी के बीच प्रात: सूर्योदय के समय लिया। इनके बहुत सारी बातें हुई, जो जिज्ञासाएं मेरे मन में थी, वह सवाल के रुप में सामने आई और उनके जवाब जुनैद ने दिए। इन्होंने प्रकृति के साथ जुड़कर, प्रकृति के नियमों के साथ चलकर अपनी व्याधि पर विजय पाने संघर्ष किया।

जिन डॉक्टरों ने चार छ: महीने का जीवन दिया था, वे भी अब अचंभित हैं कि चार वर्ष तक यह व्यक्ति जिंदा कैसे है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। जुनैद कहते हैं – हमने व्याधियाँ प्रकृति से दूर रहकर पाई हैं तो उनका निराकरण भी प्रकृति के सानिध्य में ही है।

मैने यह साक्षात्कार इसलिए लिया कि लोग कैंसर जैसी बीमारी का नाम सुनकर उसके आगे आत्मसमर्पण कर देते हैं तथा मरने का इंतजार करते हैं। जैसे भी हो इस भयंकर प्राणहरण करने वाली व्याधि से जुनैद लड़ रहे हैं, यह उनकी उत्कट जीजिविषा है, जीवन की इच्छा है, जो अन्य लोगों को भी प्रेरित करेगी।

मेरा भी अंतिम में यही कहना है कि लौट चलें प्रकृति की ओर, जो अपनी है और पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं जिससे आने वाली पीढ़ी इन भयानक बीमारियों का शिकार न हो। पथ्य का सेवन करें, कुपथ्य को छोड़े एवं प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन संचालित करें, सदैव निरोगी रहेंगे।

हाँ ! साक्षात्कार का वीडियो अवश्य देखिए तथा अपने मित्रों तक इसे शेयर भी कीजिए। कैंसर के खिलाफ़ लड़ाई में जुनैद भाई का उत्साह बढ़ाईए।

पोस्ट अपडेट नोट : कैंसर से पांच साल तक संघर्ष करने के बाद जुनैद जी की अगस्त 2020 में मृत्यु हो गई।

फ़ोटो एवं साक्षात्कार

ललित शर्मा इंडोलॉजिस्ट

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2 comments

  1. Gyanendra pandey

    जुनैद भाई चिरजीवी रहेँ, ईश्वर उन्हेँ लँबी आयु प्रदान करे।
    हम सबके लिए सीख है कि अब प्रकृति की रक्षा करेँ तभी हम सुरक्षित रह सकेँगे।

  2. गजेंद्र सिंह राठौड़

    शानदार
    आप जिंदा है तो उम्मीद बाकी है ।।

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