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जिनकी रचनाओं ने राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना जगाई : राष्ट्रकवि पुण्यतिथि

आज राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पुण्यतिथि है। इनका जन्म 3 अगस्त 1886 को छोटे से कस्बे चिरगांव में हुआ था जो झांसी से 35 किमी की दूरी पर है। राष्ट्रजीवन की चेतना को मंत्र स्वर देने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य जगत में दद्दा के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गाँधी ने उनकी भाषायी सरलता के कारण ही उन्हें राष्ट्र कवि की उपाधि दी।

हिंदी की काव्य शैली को जीवंत करने वाले, भारतीय साहित्य जगत को एक नई दिशा देने वाले महान राष्ट्रकवि मैथिलीशरण दद्दा के नाम से लोगों के बीच जाने गए। मैथिलीशरण गुप्त को साहित्यजगत का ‘बड़ा भाई’ भी कहा जाता है। आज हम हिंदी के जिस काव्य स्वरूप को देखते हैं उसमें मैथिलीशरण गुप्त का बहुत बड़ा योगदान है।

पिता का नाम सेठ रामचरण कनकने और माता का नाम कौशल्या बाई के पुत्र मैथिलीशरण गुप्त ने छोटी उम्र से ही अनुवाद और ब्रजभाषा में काव्य लिखना प्रारम्भ कर दिया था। पिता उन्हें डिप्टी कलेक्टर बनाना चाहते थें। परन्तु पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था।

दद्दा को बहुत ही दुःख भरे समय से गुज़रना पड़ा। कारोबार में लाखों का घटा तथा कम उम्र में ही उनकी दो शादियां हुई और दोनों पत्नी, माँ पिता सभी का निधन हो गया। फिर कविता, दोहा, चौपाई, छप्पय लिखने लगे और पत्रिकाओं में उनकी रचना प्रकाशित होते गया। शुरू में वो ‘रसिकेन्द्र’ नाम से रचना किया करते थे।

गुप्त ने 12 साल की उम्र से ही साहित्य में हाथ आजमाना शुरू कर दिया और ब्रजभाषा में कविताएं लिखने लग गए। उनकी खड़ी बोली की कविताएं मासिक ‘सरस्वती’ में छपने लग गई। 1914 में उनकी रचनाएं ‘भारत-भारती’ और 1931 में आई ‘साकेत’ आज के समय में भी सार्थक मानी जाती है।

उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ……..

‘आज भी जब दिनभर की परेशानी से थकता-ठिठकता कोई इंसान केवल,

यह सुनकर फिर जोश से खड़ा हो सकता है कि ‘नर हो न निराश करो मन को.

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो, न निराश करो मन को

“चारुचंद्र की चंचल किरणें

खेल रहीं हैं जल थल में

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है

अवनि और अम्बरतल में

देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे

किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे

वैष्णव कवि होने के साथ राष्ट्रकवि इसीलिए कहाए क्यूंकि उन्होंने, उन्होंने देश और काल का विस्तार कर प्रायः सभी जाति वर्ण, समाज के लिए कुछ न कुछ लिखा। नारी पात्रों के प्रति उन्होंने सहानुभूति खूब दिखाई। हालांकि वो फेमिनिस्ट नहीं कहते थे खुद को।

बुद्ध की पत्नी यशोधरा के मनःस्थिति पे लिखी उनकी ‘यशोधरा’ किसने नहीं पढी अपने स्कूलों में? ‘साकेत’ नामक महाकाव्य में लक्षमण की पत्नी उर्मिला को केंद्र में रखा। पंचवटी, वनवैभव, हिन्दू, वक संहार, शक्ति, झंकार, विश्वराज्य, सिद्धराज उनकी उल्लेखनीय रचनाए हैं। बेहद विनोदी स्वभाव के कवि थे गुप्त जी।

गुप्त को देश की जनता एक कवि से ज्यादा राष्ट्रकवि के रूप में जानती है जिसका कारण है उनकी लिखी रचनाएं जो देश की आजादी के पहले लोगों में राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना जगाती थी। उनकी रचनाएं आजादी के आंदोलनों की भाषा बन गए। इसलिए गुप्त को महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि कहा। कवि के रूप में साल 1941 में उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी।

काव्य शिल्प की दृष्टि से उनकी रचनाएँ श्रेष्ठ है। ‘जयद्रथ वध’ की लोकप्रियता ने ही उन्हें आगे और लिखने की प्रेरणा दी। गुप्त जी की रचनाओं में गद्य, पद्य, मौलिक, नाटक, अनुदिक, महाकाव्य, गीतिकाव्य, खंडकाव्य, गीतिनाट्य शामिल है। खंडकाव्य “भारत भारती” के वजह से उन्हें स्वाधीनता आंदोलन में खासी लोकप्रियता मिली।

मैथिलिशरण गुप्त लगातार दो बार राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए और समय पड़ने पे जनता की आवाज़ को, दर्द को मुखरित किया अपने काव्यशैली के द्वारा। साहित्य का यह जगमगाता सितारा 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से अस्त हो गया।

आलेख

रेखा पाण्डेय
व्याख्याता हिन्दी
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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