Home / इतिहास / दक्षिण कोसल की जोंक नदी घाटी सभ्यता एवं जलमार्गी व्यापार
जोंक नदी छत्तीसगढ़

दक्षिण कोसल की जोंक नदी घाटी सभ्यता एवं जलमार्गी व्यापार

प्राचीनकाल से मानव ने सभ्यता एवं संस्कृति का विकास नदियों की घाटियों में किया तथा यहीं से उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी। नदी घाटियों में प्राचीन मानव के बसाहट के प्रमाण मिलते हैं। कालांतर में नदियों के तटवर्ती क्षेत्र आवागमन की दृष्टि से सुविधाजनक एवं व्यापार के केंद्र बने। प्राचीन मार्गो के संबंध में महाभारत पुराणों एवं प्राचीन ग्रंथों के साथ ही साथ अथर्ववेद में इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है।

ये ते पन्थनो बहवो जनायन रथस्य वत्मानसश्च यातवे।
यै संचरन्त्युभये भद्पापास्तम पंथानम जयेमानमित्रमतस्क्रम, यचिछवम तेन नो मृड।।

देवशरण अग्रवाल ने उक्त मंत्र में सानिध्य तथ्यों की ओर आकर्षित करते हुए व्याख्या की कि इस भूमि पर पंथ या मार्ग की अनेक संख्या है जो मानव यातायात के प्रमुख साधन हैं, इसमें रथ के लिए रास्ते हैं, माल ढोने वालों के आवागमन के लिए भी प्रमुख साधन है।

जोंक नदी घाटी छत्तीसगढ़

इस प्रकार इस क्षेत्र में मिस्टर चिसम ने भी जोंक नदी के तट पर चारों दिशाओं में जाने वाले मार्गों को उचित ठहराया है, जोंक नदी की घाटी में हम देखते हैं कि यहां मानव की सभ्यता किस प्रकार विकसित हुई है? यदि हम जोक घाटी की बात करें तो उद्गम स्थल मारागुड़ा के बाद यदि कहीं दिखाई देती है, तो मारागुड़ा प्राचीन नगर इस बात के संकेत देता है कि यहां व्यापार होता था।

मारागुड़ा के नीचे त्रिशूल टीला, पतोरा उसके बाद पताल घुटकुरी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में परकोम स्थित निषध दहरा के पास नवकापट्टनम काफी स्पष्ट देखने को मिलता हैं। जैसे-जैसे जोंक नदी आगे बढ़ती है, नर्रा (छ ग ) और कुररूमुड़ा उड़ीसा ओर दोनों ही पार में नवकापट्टनम को स्थानीय प्रचलित भाषा में इसे डोंगिया कहते हैं।

ब्रिट्रिश काल तक बाजार के बारे में भी यहां जानकारी मिलती है। एक बड़ा बाजार यहां 3 दिनों तक लगता था इसके आगे बढ़े तो रेलवे पुल के पास टेमरी में नौकापत्तनम मिलता है जो अब खेतों में तब्दील हो चुका है। जोक नदी जैसे जैसे आगे बढ़ती है साल्हे भाटा खेमड़ा जहां एक विशाल आदमकद गणेश जी की प्रतिमा एवं पंचायतन शैली की मूर्तियां, टेराकोटा के अवशेष इस बात को प्रमाणित करते है कि यह एक समृद्ध नगर व व्यापारिक केंद्र रहा होगा।

जोंक नदी घाटी में प्राचीन सभ्यता का सर्वेक्षण करते हुए पुराविद डॉ शिवाकांत बाजपेयी – फ़ोटो अतुल प्रधान

व्यापार के सभी साधनों में उपयोग में आने वाले मृदा निर्मित मापन पात्र और औषधि निर्माण में प्रयोग की जाने वाले पात्र सेनभाठा से प्राप्त हुए है। खुड़मुड़ी और आगे उदरलामी, परसवानी, संकरा, सपोस, रायपुर जिले में छतवन नागेड़ी, राजा देवरी, सोनाखान, हसुआ, कटगी में सरार है। जिसे स्थानीय भाषा मे डोंगिया कहते हैं तथा नवकापट्टनम भी कह सकते हैं।

इन स्थानों पर रखे पत्थर एवम घाट यदा-कदा दिखाई देते हैं। जोक नदी के तट पर बड़े पैमाने पर व्यापार में वनोंपज एवं यहां खाद्यान्न की आपूर्ति होती रही होगी। महानदी के तट पर बड़े बाजार होने के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं। जैसे कि सिरपुर में एशिया का सबसे बड़ा बाजार होने का संकेत पुराविद डॉ ए के शर्मा ने अपने उत्खनन से दिया।

यहाँ उत्खनन से प्राप्त विशाल आधुनिक बाजार, मुद्रा व्यापार हेतु अनुमति पत्र में लगने वाले सील मुद्रा, औषधालय खाद्यान्न तैयार करने वाले उपस्कर प्राप्त हुए हैं, प्राप्त सिक्के एवम मनके अरब एवं पर्सिया से होने वाले व्यापार व व्यापारियों की पुष्टि करते हैं।

जोंक नदी छत्तीसगढ़

इसी प्रकार रीवा उत्खनन डॉ पुरुषोत्तम साहू द्वारा प्राप्त अवशेषों में कुषाण कालीन सिक्के और अरेबियन मनके महानदी घाटी में समृद्ध व्यापार को इंगित करते है। तरीघाट, सिरकट्टी स्थित विशाल नवकापट्टनम इस बात के संकेत देते हैं कि देशी ही नहीं अपितु विदेशों से भी व्यापार के लिए यहां व्यापारी पहुंचते थे और अपना व्यापार करते थे।

इस प्रकार जोंक घाटी की सभ्यता व्यापार के दृष्टिकोण से काफी सफल रही है और क्षेत्र में व्यापार की व्यापक संभावनाएं का विश्लेषण किया जा सकता है। नलवंशी शासनकाल के प्राचीन अवशेष त्रिशूल टीला पर प्राप्त होते हैं। नदी के तट पर प्राप्त पाषाण मूर्तियां इस बात को संकेत देती हैं कि यहां पत्थर बाहर से लाए गए एवं उनकी मूर्ति यहां स्थापित की गई।

दूसरा पहलू यह भी है कि किसी शासक ने राज्य विस्तार एवं प्रशासनिक मजबूती जोंक घाटी के माध्यम से की। परिणामतः इन स्थानों पर मन्दिर, मूर्तियां स्थापित कर अपने राज्य और राजस्व को बढ़ावा देने का प्रयास किया होगा जिसमें व्यापारियों की अहम भूमिका आवश्यम्भवी रही होगी।

जोंक नदी तट सर्वेक्षण के दौरान पुराविद डॉ अतुल प्रधान

शरभपुरीय शासन काल मे मारागुड़ा घाटी की सभ्यता पूर्णतः विकसित थी। इसका उल्लेख जीतमित्र प्रसाद सिंहदेव ने अपनी पुस्तक दक्षिण कोसल का सांस्कृतिक इतिहास में दिया है। प्रो एस आर नेम, एल पी पांडेय एवं प्रो मोरेश्वर गंगाधर दीक्षित ने शरभपुरीय शासको के अस्तित्व को इंगित किया है।

मारा गुड़ा घाटी में रयताल बांध और उसके आसपास विस्तृत भूभाग में बिखरे पुरावशेषों एवं उत्खनित पुरातत्व सामग्री, मुद्रा आदि इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। इनके शासन में जल मार्ग एवं जल व्यापार का यहां के बहुसंख्यक जनजातियों पर प्रभाव रहा। इनका समृद्धशाली इतिहास रहा है। मारागुड़ा घाटी के पतन के पश्चात शरभपुरीय शासको ने अपनी राजधानी सिरपुर को बनाया ।

शरभपुरीय शासक शनैः शनैः शक्तिशाली हो कर राज्य विस्तार करने के लिए महानदी के मैदानी भाग में अपने वर्चस्व को बढ़ाने के उद्देश्य से सिरपुर को अपनी राजधानी के रूप में चुना। इनके कार्य काल का वैभव सिरपुर से प्राप्त पुरावशेष, उत्खनन से प्राप्त अब तक का सबसे बड़ा बाजार व्यवस्था इस बात के धोतक है कि महानदी और उनकी सहायक नदीयों मे व्यापार हेतु बाजार की व्यवस्था होती थी ।

जोंक नदी छत्तीसगढ़ पर आधुनिक पारपथ

जोंक नदी का सर्वेक्षण करने वाले प्रो एन के साहू सम्बलपुर विश्वविद्यालय, डॉ एल एस निगम ने दक्षिण कोसल का ऐतिहासिक भूगोल में जोंक नदी के व्यापार का उल्लेख किया है। इसी प्रकार डेक्कन कॉलेज के शोधर्थियों का शोध तथा डॉ एस के बाजपेयी एवं डॉ ए के प्रधान ने सर्वेक्षण किया।

जोंक नदी घाटी में 40 स्थानों पर पाषाण के पूर्व पाषाण कालीन औजार, पुरावशेष प्राप्त होने की विस्तृत रिपोर्ट कोसल-9 संस्कृति विभाग छ ग में प्रकाशित है। जोंक नदी तट पर प्राचीनकालीन नवकापट्टनम स्थानीय भाषा मे डोंगिया प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही तट पर की बसाहट में नगर संरचना की उत्कृष्ट शैली में पाषाण प्रतिमाएं इस बात के धोतक हैं कि जोंक घाटी कभी व्यापार की दृष्टि से समृद्ध थी।

आलेख

विजय कुमार शर्मा (शोधार्थी) कलिंगा विश्वविद्यालय कोटनी, रायपुर (छ ग)
vijaykomakhan@gmail. com

About hukum

Check Also

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जनम दिवस 3 दिसम्बर विशेष भारत में कुछ …

One comment

  1. मनोज पाठक

    बहुत महत्वपूर्ण जानकारी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *