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जानी अनजानी कथा केशकाल की

छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर अंचल को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ने वाला रास्ता केशकाल की घाटी से गुजरता है एक तरह से यह घाटी वहाँ की जीवन-रेखा है। यह घाटी अपनी घुमावदार सड़क और प्राकृतिक सुंदरता के लिये जानी जाती है। प्रस्तुत है उसी घाटी की सड़क की छोटी सी जन्म कथा जिसे श्री हेमचंद्र सिंह राठौर ने डॉ राजाराम त्रिपाठी के साथ साझा किया।

केशकाल ग्राम का क्षेत्र सन् 1890 तक जंगल झाड़ी से भरा हुआ था। न वहाँ कोई गाँव था, न ही कोई आबादी थी। पहाड़ों की वजह से आगे जाने का रास्ता पूर्णतः अवरूद्ध था।

बस्तर राज्य के राजा श्री भैरम देव ने कथित पहाड़ को तोड़वा कर उसके बीच से रास्ता निकालने का निश्चय किया ताकि बस्तर राज्य का संपर्क बाहरी दुनिया से हो सके। महाराजा भैरम देव ने कथित ‘तेलिन घाटी’ (वर्तमान) के पहाड़ को तोड़कर रास्ता निकालने का कार्य (ठेका) सन् 1879 में उत्तर प्रदेश निवासी श्री पुत्तन राम सिंह ठेकेदार को सौंपा।

श्री पुत्तन राम सिंह घाटी का कार्य शुरू करने के पूर्व कांकेर राज्य के पुराने पुल (तेलगरा का पुराना पुल) निर्माण के कार्य से निवृत हुये थे। पहाड़ तोड़ कर रास्ता निकालने का कार्य सन् 1890 में पूर्ण हुआ। पहाड़ से रास्ता निकल जाने से इस क्षेत्र एवं बस्तर राज्य का संपर्क बाहरी दुनिया से होने लगा। इससे बस्तर राज्य के व्यवसाय एवं विकास की संभावना निश्चित हुई।

उस समय तक यह सड़क जगदलपुर से पहाड़ तक एक मिट्टी मोरम की कच्ची सड़क थी। पहाड़ के टूटने एवं रास्ता निकल जाने के पश्चात् महाराजा भैरम देव ने आवागमन की सुविधा को ध्यान में रख कर पक्की सड़क के निर्माण में ध्यान दिया, जो अति आवश्यक था। महाराजा ने श्री पुत्तन राम सिंह ठेकेदार को पुनः सड़क निर्माण हेतु प्रेरित कर, सड़क निर्माण का ठेका उन्हें दिया। बस्तर राज्य की सीमा उत्तर में (मुखेंड गांव से 9 कि.मी. आगे) कांकेर राज्य की सीमा से मिलती थी, वहॉं से ही सड़क निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया।

कथित तेलिन घाटी (वर्तमान में भी) के निर्माण में लगभग 10-11 वर्ष लगे थे। इस अवधि में ठेकेदार श्री पुत्तन राम सिंह तंबुओं, झोपड़ियों में रहकर मय परिवार समय व्यतीत कर रहे थे, अतः जब महराजा ने सड़क का नया कार्य श्री पुत्तन राम सिंह को जगदलपुर बुलाकर दिया तब उन्होंने महाराजा भैरम देव से निवेदन किया कि उन्हें कुछ मकान आदि के लिये भूमि दिलाई जाये ताकि वे व्यवस्थित हो कर रह सकें। परिवार भी बड़ा हो गया था। दो पुत्र एवं एक पुत्री के साथ 5 सदस्यों का परिवार था।

महराजा साहब ने श्री पुत्तन राम सिंह से पूछा कि जमीन कहाँ चाहते हो? इस पर पुत्तन राम सिंह ने घाट के ऊपर आसपास कहीं पर भी जमीन देने की मांग की। जो आज केसकाल ग्राम कहलाता है इस ग्राम की पूरी भूमि राजा ने पुत्तन राम सिंह के नाम कर दी, जिसका पट्टा 2 माह पश्चात बस्तर राज्य की सील मुहर के साथ इन्हे मिल गया।

इतने बड़े क्षेत्र का पट्टा मिलने पर पुत्तन जी को आश्चर्य हुआ, इसलिए कि उनकी मांग की आशा ऐसी न थी। कुल भूमि लगभग 600-700 एकड़ थी। उन्हें पट्टा देने में किसी प्रकार की भूल की शंका हुई अतः वे समय निकाल कर (जगदलपुर का नाम पहले जगदूगुड़ा था) शंका समाधान हेतु, महाराजा साहब से मिलने जगदलपुर (बैलगाड़ी से) गये। महाराजा साहब से मिलकर उन्होंने अपनी शंका व्यक्त की। इस पर महाराजा भैरमदेव ने कहा कि शंका की कोई बात नहीं हैं। हमने स्वेच्छा से तुम्हें यह भूमि दी है तुम इसका विकास करो। दरअसल महराजा घाट से रास्ता निकलने पर खुश थे।

श्री पुत्तन राम सिंह जगदलपुर से वापस आ गये। उन्होंने स्थान चयन कर एक अच्छा सा मकान बनाने का निश्चय किया। वह मकान आज भी केसकाल ग्राम के बीचों-बीच अच्छा हालत में स्थित है। तब तक केसकाल ग्राम का कोई नामकरण नहीं हुआ था। चूंकि संपूर्ण क्षेत्र (वर्तमान केशकाल) जंगल झाड़ी से भरा हुआ था, अतः उस क्षेत्र का विकास (महाराजा साहब के आदेशानुसार) का कार्य एक जटिल समस्या थी।

यहां मैं बताना चाहॅूंगा कि श्री पुत्तन सिंह मेरे दादा जी थे। मेरे दादा जी ने अपने मुनीम, मुंशी एवं कामगर लोगों को इस क्षेत्र में बसने के लिये प्रात्साहित किया कि वे लोग यहीं बसें और खेंतों की भूमि भी मुफ़्त में लेवें जिसका पट्टा शासकीय तौर पर उन्हें मुफ़्त में मिलेगा। इस तरह ठेकेदार ने प्रत्येक बसने वाले को 5 से 7 एकड़ भूमि खेत के लिये और घर-बाड़ी के लिये भी अपने खाते से भूमि निकाल कर देना शुरू किया। कुछ लोग इस तरह अपना मकान एवं खेती बनाने में लग गये। वर्षों साथ रहने से दादा जी पर लोगों को पूर्ण विश्वास था।

सर्वप्रथम श्री लाला जगरूप प्रसाद श्रीवास्तव ने (जो ठेकेदार के साथ उत्तर प्रदेश से आये थे एवं मेरे दादा जी पुत्तन सिंह के मुख्य मुनीम थे) अपना मकान एवं खेती सुधार का कार्य शुरू किया, जिसे दादा जी ने उन्हें दी थी। श्रीवास्तव जी पुत्तन सिंह की भूमि का कार्य भी देखते थे। मुख्य रूप से जमीन सुधार का कार्य श्री बलियार सिंह (जो मुंशी थे) देखते थे।

श्री श्रीवास्तव एवं श्री बलियार सिंह का परिवार आज भी केसकाल में आबाद है। इस तरह अन्य किसानों ने भी अपनी अपनी खाते की भूमि की मरम्मत शुरू कर दी। गाँव बसने लगा और खेती भी बनने लगी। वे यथोचित सहायता भी लोगों को देते थे। गाँव बसाने में सबसे अच्छा सहयोग छत्तीसगढ़ से आये कामगारों एवं आदिवासी कामगारों से मिला। आज भी केशकाल में मुख्य मोहल्ले उन्ही के हैं।

जब लोग यहाँ घर बना कर बसने लगे, तब गाँव का क्षेत्र निर्धारित करने का प्रश्न आया। श्री पुत्तन राम सिंह ने ‘तहसीलदार बड़े डोंगर’ को गाँव के बसावट हेतु गाँव की सीमा निर्धारित करने के लिये निवेदन किया। (कोंडागॉंव की वर्तमान तहसील एवं वर्तमान केशकाल तहसील का क्षेत्र 1924 ई. के पूर्व बड़ेडोंगर से तहसील उठा कर कोंडागाँव को तहसील बनाया गया) ग्राम क्षेत्र अलग किया गया एवं ग्राम क्षेत्र घोषित की गई।

किसानों की भूमि का भी अलग रेकार्ड (रेवन्यु रेकार्ड) तैयार किया गया जिसका शासकीय पट्टा उन्हें मिला। ठेकेदार के खाते से किसानों की भूमि अलग कर दी जाती थी। यह ग्राम व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता था। सन् 1896 में महाराजा भैरमदेव की मृत्यु हो गई। बस्तर राज्य की गद्दी पर उनके पुत्र श्री रूद्रप्रतापदेव बैठे।

जब वर्तमान केशकाल की बसावट की शासकीय रिपोर्ट (तहसीलदार द्वारा) राज्य शासन को मिली तब बड़ेडोंगर तहसील के अंतर्गत राज्य में एक नया गाँव बसने की प्रक्रिया चालू थी।

सन् 1905 में श्री बैजनाथ पंडा बस्तर के दीवान थे, तब वर्तमान केसकाल विकसित हो चुका था। इस रिपोर्ट के आधार पर ग्राम का नामकरण करना आवश्यक था।अतः श्री बैजनाथ पंडा दीवान बस्तर राज्य ने यहाँ (वर्तमान केशकाल) आकर एक जलसा का आयोजन कर इस नये गाँव का नाम ‘केशकाल’ घोषित किया।

केशकाल नामकरण का कारण-

पुत्तन राम सिंह की पत्नी का नाम केशादेवी था। उनके दो नाम थे- जन्म का नाम था केशादेवी और घर या जान-पहचान के लोगों में वे ‘महरजिया’ कहलाती थीं। यह उनके स्वभाव के कारण लोगों ने उपनाम रख लिया था। वे बहुत ही सरल एवं उदार प्रवृत्ति की महिला थीं। जरूरतमंदो की वे हृदय से सहायता करती थीं। ‘केशकाल’ को श्री बैजनाथ पंडा ने निम्नआधार पर जोड़ा और इसका नामकरण किया।

‘केशादेवी’ – केशा, तेरह भांवरों की लहराती हुई ‘काल स्वरूप घाटी’ के दृश्य के मिलन से ‘केशकाल’ का नामकरण हुआ है। घाटी का कार्य शुरू होने पर अनेक परिवार के कामगार के रूप में आये थे। चूंकि घाट (केशकाल या तेलन घाटी) और सड़क का काम काफी लंबा चला अतः कामगर झोपड़े बना कर रहने लगे थे। पहाड़ से हटकर जो आज केशकाल है एक ऊंची जगह पर (डीही) कोसरूराम एवं उनके परिवार के सदस्यों ने चार पाँच झोपड़े बनाकर रहना शुरू कर दिया था। थोड़ी बाड़ी-बखरी भी बना ली थी।

वही ‘डिही’ आज का आदिवासी मोहल्ला है, जिसे मुरिया पारा या ‘कोसरू डिही’ भी कहा जाता था। यह भी सच है कि कोसरूराम, केसकाल के बसावट का प्रत्यक्ष साक्षी था। वह अंत तक पुत्तन राम सिंह के परिवार से जुड़ा रहा।

केशकाल घाट से तेलिन घाटी-

जब केशकाल घाटी का रास्ता खुला और आवागमन शुरू हुआ तब बैलगाड़ियों का जमाना था। पैदल या घोड़ों पर लोग सफ़र करते थे। केशकाल घाटी एक भयावह घाटी थी और आंशिक रूप से आज भी है। पुराने वक्त में दिन में भी शेर चीते सड़क पर मिल जाते थे। इस घाटी को पार करते समय लोगों में एक अज्ञात भय सदैव बना रहता था। ऐसे समय में मनुष्य स्वभाव में एक बात सदैव आती है और वह यह कि ‘ईश्वर’ उसकी रक्षा करें।

बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्र में ईश्वर की जगह देवी-देवताओं का मान्यता है। हाँलाकि मान्यता की भावना एक ही है (परम शक्तिवान)। अतः मुसाफिरों ने, खासकर गाड़ीवानों ने, जिनका सफ़र घाटी की भयानकता को देखते हुये अधिक कष्टदायक था एक देव पत्थर की स्थापना कर उस पर तेल चढ़ाते थे। भावना यह भी की उनकी यात्रा सुगम हो। गाड़ीवान जो तेल देव पत्थर पर चढ़ाते थे, वह चक्कों में (गाड़ी के) डालने वाला तेल होता था, जिसे ‘ओंगन तेल’ कहा जाता है।

तेलीन सत्ती माँ के प्रकटीकरण की कथा

एक किवदंती हैं, कि एक गाड़ीवान अपने साथियों से पिछड़ा गया। कारण, उसके बैलों का कमजोर होना था। आधी घाटी पार करते वक्त काफी रात हो चली थी। देवस्थान पर पहुँच कर उसने गाड़ी ढील दी और वह आग जलाने की व्यवस्था करने लगा कि उसे शेर की गर्जना सुनाई दी। उसने देव को याद किया और अपने ढोंढे का (बांस से बना) सारा तेल देव पर चढ़ा दिया। उसने फिर शेर की दूसरी आवाज सुनी। वह हताश होकर भय के कारण देव पत्थर के सामने ही मूर्छित हो गया। मूर्छावस्था में उसे एक देवी के दर्शन हुये जो उसकी रक्षा में खड़ी थीं।

जब उसकी मूर्छा हटी तब सुबह होने को थी। उसका सर तेल से भींगा हुआ था। उसने देव पत्थर को देवी के रूप में स्वीकार किया। अपने गाँव जाकर (कांकेर स्टेट का कोई गाँव) यह वाक्या अपने परिवार एवं गाँव वालों को बताया। उसने देवी से मान्यता मानी थी कि वह परिवार के साथ पुनः आकर देवी माँ की विधिवत् पूजा-अर्चना करेगा। उसने अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ पुनः आकर देवी माँ की पूजा-अर्चना की और उसने मूर्छावस्था की देवी माँ को तेलिन सती माँ से मान्यता दी। तब से केशकाल घाटी का नाम ‘तेलिन घाटी’ के नाम से मशहूर हुआ। आज भी तेलिन माँ की बड़ी मान्यता है।

केशकाल ग्राम के निर्माण में श्री पुत्तन राम सिंह की दिलचस्पी एवं मेहनत से महाराजा श्री रूद्रप्रताप देव (महाराजा प्रवीर चंद्र भंज देव के नानाश्री) बहुत प्रभावित थे। सन् 1905 के ही बस्तर दशहरे के समय दरबारे आम में उन्होंने केशकाल गाँव की मालगुज़ारी श्री पुत्तन राम सिंह के नाम घोषित किया। यही केशकाल का मेरे परिवार से जुड़ा संक्षिप्त इतिहास है।

केशकाल ग्राम में सन् 1890 के पश्चात् प्रथम दौर में आये गणमान्य व्यक्तियों के नाम।

1-श्री बलियार सिंह (श्री लम्बोदा सिंह पूर्व सांसद के पिता श्री) 2. पंडित श्री छेदीलाल जी अग्निहोत्री, 3. श्री डोंगरमल जी सेठ 4.श्री रामअधिन माहेश्वरी, 5. श्री सुंदरलाल जी (श्री झाड़ूराम पूर्व सांसद के पिता श्री), 6. श्री लतीफभाई सेठ (कच्छ से आये प्रथम व्यक्ति) 7. पंडित गयाप्रसाद जी अग्निहोत्री 8. श्री मिस्त्री मन जी सेठ 9. श्री मन्नूलाल जी राहाटे 10. श्री कृपाशंकर, देवनाथ पांडे।

हेमचंद्र सिंह राठौर परिचय

श्री हेमचंद्र सिंह राठौर गज़लकार और साहित्यकार रहे हैं। आपने शिकार कथायें लिखि हैं और कुशल शिकारी के रूप में जाने जाते रहे हैं। बस्तर स्टेट के अंतिम राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के अच्छे मित्रों में से थे। इन्होंने बस्तर का गोली काँड अपनी आँखों से देखा हे। इस समय लगभग 90 वर्ष की आयु में आप पूरी तरह स्वस्थ हैं। इन्होंने तत्कालीन पराधीन भारत में अंग्रेज शासकों के जो प्रतिनिधि बस्तर में आते थे उनके साथ काफी वक्त गुजारा है। यहाँ तक कि बस्तर स्टेट में जो भी अतिथि आते उनके आवागमन और देखभाल की जिम्मेदारी भी आप पर रहती थी। एक प्रकार से इन्होंने विगत लगभग 70 वर्ष के इतिहास को बदलते हुए देखा है और बस्तर के इतिहास के जीवंत चश्मदीद गवाह और साक्षी कहे जा सकते हैं। उनके अपने दादाजी स्व. पुत्तन राम सिंह जिनकी देखरेख में महाराजा भैरम देव की आज्ञा से यह सड़क बनी, उस पूरी प्रक्रिया की एक झलक जो उन्होंने अपने पुरखों से देखा-सुना था उसकी यह प्रस्तुति एक अमूल्य धरोहर आने वाली पीढ़ी के लिए है।

श्री हेमचंद्र सिंह राठौर
पता- सरदार पेट्रोल पेप के पास, मेन रोड,
कोण्डागांव, बस्तर, छ.ग. 494226

आलेख साभार – मासिक प्रत्रिका ककसाड़

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