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साहित्य

कहत कबीर सुनो भाई साधो…

कबीर पंथ के चौदहवे आचार्य पंथश्री गृन्धमुनिनाम साहब ने अपने ग्रंथ ‘सद्गुरु कबीर ज्ञान पयोनिधि’ की प्रस्तावना में लिखा है,- “संसार के लोग राख के ढेर पर ही पैर रखकर चलते हैं- जलती आग पर नहीं। किन्तु जो इसके ठीक विपरीत होते हैं, आग पर चलकर अग्नि परीक्षा देते हैं– …

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भारतीय प्राचीन साहित्य में पर्यावरण संरक्षण का महत्व

प्रकृति और मानव का अटूट संबंध सृष्टि के निर्माण के साथ ही चला आ रहा है। धरती सदैव ही समस्त जीव-जन्तुओं का भरण-पोषण करने वाली रही है। ‘क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पंच रचित अति अधम सरीरा ।’ इन पाँच तत्वों से सृष्टि की संरचना हुई है। बिना प्रकृति के …

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ओ थके पथिक! विश्राम करो, मैं बोधि वृक्ष की छाया हूँ

संत कवि पवन दीवान की जयंती एक जनवरी पर विशेष आलेख -स्वराज करुण छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए  अपनी मर्मस्पर्शी और ओजस्वी कविताओं के माध्यम से  कई दशकों तक  जन -जागरण में लगे पवन दीवान आज अगर हमारे बीच होते तो 76 साल के हो चुके होते । लेकिन तब …

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साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी : जन्म शताब्दी

अपनी लगभग 77 वर्षों की सुदीर्घ साहित्य साधना से छत्तीसगढ़ और बस्तर वनांचल को देश और दुनिया में पहचान दिलाने वाले लाला जगदलपुरी आज अगर हमारे बीच होते तो आज 17 तारीख़ को अपनी जीवन यात्रा के सौ वर्ष पूर्ण कर 101 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके होते। लेकिन …

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अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार : छत्तीसगढ़ निर्माण दिवस

पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का सपना हमारे पुरखों ने देखा था और उस सुनहरे स्वप्न को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए संघर्ष और आंदोलन का एक लंबा दौर चला। पं.सुंदरलाल छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम स्वप्नदृष्टा थे तत्पश्चात डॉ खूबचंद बघेल, संत पवन दीवान, ठाकुर रामकृष्ण सिंह और श्री चंदूलाल …

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मध्ययुगीन भारतीय भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई

मध्ययुगीन भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई उस युग की एकमात्र महिला भक्त संत है जिन्होंने सगुण भक्ति के कृष्णोपासक के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप ही नही छोड़ी वरन उस युग के समाज पर प्रश्न उठाकर समाज की दिशा व दशा निर्धारित करने का बीड़ा भी …

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ज्योतिष और खगोलशास्त्र के प्रकांड पंडित : महर्षि वाल्मीकि

भारत वर्ष ॠषि, मुनियों, महर्षियों की जन्म भूमि एवं देवी-देवताओं की लीला भूमि है। हमारी सनातन संस्कृति विश्व मानव समुदाय का मार्गदर्शन करती है, यहाँ वेदों जैसे महाग्रंथ रचे गए तो रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्य भी रचे गये, जिनको हम द्वितीयोSस्ति कह सकते हैं क्योंकि इनकी अतिरिक्त विश्व में …

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लोक अभिव्यक्ति का रस : ददरिया

लोक में ज्ञान की अकूत संचित निधि है, जिसे खोजने, जानने और समझने की बहुत आवश्यकता है। लोकज्ञान मूलतः लोक का अनुभवजन्य ज्ञान है जो यत्र-तत्र बिखरा हुआ है और कई गूढ़ रहस्यों का भी दिग्दर्शन कराता है। यह विविध रूपों में हैं, कहीं गीत-संगीत, कहीं लोक-कथाओं और कहीं लोक-गाथाओं …

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हिन्दी है जन-मन की भाषा

(14 सितम्बर, हिन्दी दिवस पर विशेष) प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हम “हिन्दी दिवस” मनाते हैं, भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राष्ट्रभाषा होगी। हालांकि इसे 1950 को देश के संविधान द्वारा …

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समाज की गहरी खाई को भक्ति के माध्यम से पाटने वाले कवि तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास भारत के गिने-चुने महान कवियों में हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव-समाज को सतत् ऊपर उठाने का प्रयत्न किया है। यही कारण है कि रामचरित मानस विनयपत्रिका, हनुमान चालीसा जैसी उनकी रचनाएँ आज भी लाखों लोगों के द्वारा रोज घर-घर में पढ़ी जाती है। भारत के …

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