लौट आए हैं नगर में भेड़िये एक बार फ़िर से।कत्ल कर रहे मानवता का एक बार फ़िर से॥ लोगों की भीड़ में शिनाख्त कर लो तुम इसकी,जाग गये हैं कातिल शैतान एक बार फ़िर से॥ नोच-नोच कर लहूलूहान कर गये इंसानियत को,हमले लगातार कर रहे हैवान एक बार फ़िर से॥ …
Read More »नित वाणी में तेज भरो माँ!
नित वाणी में तेज भरो माँ! एक नहीं, नौ माताओं की, मुझको अद्भुत शक्ति मिले ।नित वाणी में तेज भरो माँ, मुझको नव-अभिव्यक्ति मिले।। ‘शैलपुत्री’ औ ‘ब्रह्मचारिणी’, ‘चंद्रघटा’ का वंदन है।‘कुष्मुण्डा’, ‘स्कन्दमात’ औ ‘कात्यायनी’ शुभदर्शन है। ‘कालरात्रि’, ओ ‘महागौरी’ तू, ‘सिद्धिदात्री’ की भक्ति मिले।।एक नहीं नौ माताओं की, मुझको अद्भुत …
Read More »पत्थर और छेनियाँ
जो पत्थरों से जितना रहे दूरउतने रहे असभ्यउतने रहे क्रूर। जो पत्थरों से करते रहे प्यारचिनते रहे दीवारबन बैठे सरदार। फेंकते रहे पत्थर होते रहे दूर, नियति ने सपने भीकिये चूर चूर। पत्थरों को रगड़ पैदा की आग,उन्ही की बुझी भूख,उन्ही के जागे भाग। जिन्होंने फेंक पत्थरछीनना चाहा, हथियाना चाहा,वे …
Read More »नमामि गंगे
(आधार छंद – वीर छंद ) सुरसरी गंगे पतित पावनी, जन-जन का करती उद्धार। सदा धवल विमले शुभ शीतल, महिमा जिसकी अपरंपार। क्यों मानव अब भस्मासुर बन, नाच रहा है कचरा डाल।विकट कारखाने शहरों का, मिला रहे हैं मल विकराल। पावन जल को जहर बनाना , कर देंगे जब भी …
Read More »और क्या उम्मीद हो
जिन्होंने मृत्यु और अपमान में,वरण किया था अपमान का।उनकी बेटियां बिक रही है,और क्या उम्मीद हो।शकुनि के देश में,गांधार का गौरव चकनाचूर होकर,कन्धार बना खड़ा है।आहत होना दुर्भाग्य बना है।बन्दूक लिये मुजाहिद,अल्लाह हो अकबर के नारे।12 बरस की दुल्हनेंऔर 60 बरस के दूल्हे।कोई क्या कहेकैसे कहे।कुछ भी सही हैजो हो …
Read More »जूझ रही ‘आदमखोरों’ से, हर औरत अफगान की
(अफगानिस्तान के वर्तमान हालात पर एक व्याकुल कविता) जूझ रही ‘आदमखोरों’ से, हर औरत अफगान की। नादानों को कहाँ सूझती – हैं बातें सम्मान की।। नाम भले मजहब का लेते,पर मजहब से दूर हुए।हाथ में ले हथियार भयानक,मर्द अचानक क्रूर हुए।छीन लिया महिलाओं का हक,कैद किया अधिकारों को। शर्म नहीं …
Read More »गीत – गौ माता की छवि निराली
गौ माता की छवि निराली, महिमा अपरंपारमाँ कहलाती है, देती है माँ के जैसा प्यार गाय प्रतिष्ठा है भारत की, क़ीमत है अनमोलमन आल्हादित हो जाता है, सुनकर इसके बोलकर देती है भवसागर से, सबका बेड़ा पार रुकने न पाए विकास कभी, घटे नहीं सम्मानविश्वगुरु बनने के लिए नित, रखना …
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