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शोध आलेख

इस विभाग में विभिन्न विषयक शोध को स्थान दिया गया है।

राष्ट्रीय एकात्मता का प्रतीक : विवेकानन्द शिला स्मारक

स्वामी विवेकानन्द ने 19 मार्च, 1894 को स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखे पत्र में कहा था – “भारत के अंतिम छोर पर स्थित शिला पर बैठकर मेरे मन में एक योजना का उदय हुआ- मान लें कि कुछ निःस्वार्थ सन्यासी, जो दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते हैं, …

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प्रदक्षिणा की संस्कृति : राजिम की पंचकोशी यात्रा

जीवन के लिए गति आवश्यक है। गति से ऊर्जा मिलती है। केवल मनुष्य ही नही, अपितु प्रकृति के लिए यह आवश्यक है। ग्रह-उपग्रह, नक्षत्र सब गतिमान हैं। इनकी यह गतिमानता जीव-जन्तुओं व प्रकृति के अन्य उपादानों में ऊर्जा भरती है। समूची सृष्टि गति के अधीन है। गति भी कैसी? रैखिक …

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जन जागरण का काव्य : संदर्भ छत्तीसगढ़

साहित्य समाज का पहरुआ होता है। चाहे वह गीत, कविता, कहानी, निबंध, नाटक या किसी अन्य साहित्यिक विधा में क्यों न हो। वह तो युगबोध का प्रतीक होता है। कवि वर्तमान को गाता है लेकिन वह भविष्य का दृष्टा होता है। साहित्य जो भी कहता है निरपेक्ष भाव से कहता …

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लोक संस्कृति का जीवन सरिताएं

पर्यावरण दिवस विशेष आलेख भारतीय संस्कृति में नदियों का बड़ा सम्मान जनक स्थान है। नदियों को माँ कहकर इनकी पूजा की जाती है। ये हमारा पोषण अपने अमृत समान जल से करती हैं। अन्य सभ्यताओं में देखें तो उनमें नदियों का केवल लौकिक महत्व है। लेकिन भारत में लौकिक जीवन …

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बस्तर की जनजाति का अभिन्न अंग शृंगार

मनुष्य में सौन्दर्य बोध होना एक स्वभाविक गुण है। वह जब भी किसी शृंगारित सुन्दर एवं कलात्मक चीज को देखता है, तो वह उसकी तरफ आकर्षित होता है और तारीफ किये बिना नहीं रहता। हर समय मनुश्य अपने को दूसरे से सुन्दर और श्रेष्ठ दिखाने का प्रयास करता है। व्यक्ति …

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कालेपानी में सर्वाधिक प्रताड़ना झेलने वाले क्रान्तिकारी

भारतीय स्वाभिमान और स्वातंत्र्य बोध जागरण के लिए यूँ तो करोड़ों महापुरुषों के जीवन का बलिदान हुआ है किन्तु उनमें कुछ ऐसे हैं जिनके जीवन की प्रत्येक श्वाँस राष्ट्र के लिये समर्पित रही। स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ऐसे ही महान विभूति थे जिनके जीवन का प्रतिक्षण राष्ट्र और स्वत्व बोध कराने …

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छत्तीसगढ़ की नाट्य परंपरा

अभिनय मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। हर्ष, उल्लास और खुशी से झूमते, नाचते-गाते मनुष्य की सहज अभिव्यक्ति है अभिनय। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन की झांकी गांवों के खेतों, खलिहानों, गली, चौराहों और घरों में स्पष्ट देखी जा सकती है। इस ग्रामीण अभिव्यक्ति को ‘लोक नाट्य’ कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में …

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नदियाँ और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व : संदर्भ छत्तीसगढ़

भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना अलग महत्व है। वेद-पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माता की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं, औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था …

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बकरकट्टा के बैगा और उनका देवलोक

बस्तर और सरगुजा के बीहड़ वन प्रांतरों से आच्छदित छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग भी वनों से आच्छादित है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र प्रदेशों से लगा हुआ है। राजनांदगाँव जिला छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग है। इसी राजनांदगाँव जिले के छुईखदान विकासखंड में बैगा जनजाति का निवास है। जिला मुख्यालय से लगभग …

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कोल जनजाति का देवलोक

भारतीय समाज और संस्कृति इंद्रधनुष की तरह विविध रंगी है। जिसमें जनजाति समुदायों के सांस्कृतिक छवि की पृथक ही पहचान है। उन जनजातियों में ‘कोल‘ प्रमुख है। कोल जनजाति भारत की प्राचीन जनजाति है और देश के विभिन्न भागों में यह निवास करती है। कोल जनजाति के नामकरण को लेकर …

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