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शिल्पकला

शिल्प कला में ललित कला के सभी अंग समाहित हैं, यथा काष्ठ शिल्प, मृदा शिल्प, चित्रकारी, धातु शिल्प, मंदिर स्थापत्य, बांस शिल्प तथा वनोपज से सृजित अन्य शिल्प।

छत्तीसगढ़ी लोक शिल्प : कारीगरी

भारतीय संस्कृति की प्रवृति बड़ी उदात्त है। वह अपने संसर्ग में आने वाले तत्वों का बड़ी उदारता के साथ अपने आप में समाहित कर लेती है। संस्कृति का यही गुण भी है। जो सबको अपना समझता है, वह सबका हो जाता है। हमारी संस्कृति इसी गुण के कारण विश्व में …

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भारतीय हस्तशिल्प: रचनात्मकता और कलात्मकता का अनूठा संगम

भारत का हस्तशिल्प/ परम्परागत शिल्प विश्व प्रसिद्ध है, प्राचीन काल से ही यह शिल्प विश्व को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर करता रहा है। तत्कालीन समय में ऐसे शिल्पों का निर्माण हुआ जिसने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। नवीन अन्वेषण प्राचीन काल में परम्परागत शिल्पकारों द्वारा होते रहे हैं। …

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महाभारत के लेखक फ़ाउंटेन पेन के अविष्कारक

यम द्वितीया या भाई दूज के दिन ही चित्रगुप्त पूजा होती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त पूजा होती है। दिवाली के बाद चित्रगुप्त पूजा का खास महत्व होता है। चित्रगुप्त की पूजा प्राचीन काल से ही होती है लेकिन गुप्तकाल में इनके पूजा को …

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पहाड़ी कोरवाओं की आराध्या माता खुड़िया रानी एवं दीवान हर्राडीपा का दशहरा

दक्षिण कोसल में शाक्त परम्परा प्राचीन काल से ही विद्यमान है, पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त सप्त मातृकाओं, योगिनियों तथा महिषासुर मर्दनी की प्रतिमाएं इसका पुष्ट प्रमाण हैं। अगर हम सरगुजा से लेकर बस्तर तक दृष्टिपात करते हैं तो हमें प्रत्येक स्थान पर देवी सत्ता की दिखाई देती है। इन्हीं में …

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शाक्त धर्म एवं महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएं : छत्तीसगढ़

भारतवर्ष में मातृदेवी एवं शक्ति के रूप में देवी पूजन की परम्पराएं प्रचलित रही हैं। भारतीय संस्कृति की धार्मिक पृष्ठभूमि में शाक्त धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सृष्टि के उद्भव से लेकर वर्तमान काल तक के संपूर्ण विकास में शक्ति पूजा का योगदान दिखाई देता है। नारी शक्ति को …

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दक्षिण कोसल के शिल्प एवं शिल्पकार : विश्वकर्मा पूजा विशेष

शिल्पकारों ने कलचुरियों के यहाँ भी निर्माण कार्य किया, उनकी उपस्थिति तत्कालीन अभिलेखों में दिखाई देती है। द्वितीय पृथ्वीदेव के रतनपुर में प्राप्त शिलालेख संवत 915 में उत्कीर्ण है ” यह मनोज्ञा और खूब रस वाली प्रशस्ति रुचिर अक्षरों में धनपति नामक कृती और शिल्पज्ञ ईश्वर ने उत्कीर्ण की। उपरोक्त …

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गाँव का रक्षक घुड़सवार देवता : बस्तर अंचल

एक फ़िल्म का गीत याद आता है, अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर, हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है…… कुछ ऐसी कहानी बस्तर के लोकदेवता राजा राव की है। खडग एवं खेटक धारण कर, घोड़े पर सवार होकर राजाराव गाँव की सरहद पर तैनात होते हैं और सभी …

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चीन को टक्कर देना है तो देश के परम्परागत शिल्पकारों को प्रोत्साहित करना होगा

जहाँ पर मानव सभ्यता के विकास का वर्णन होता है वहां स्वत: ही तकनीकि रुप से दक्ष परम्परागत शिल्पकारों के काम का उल्लेख होता है। क्योंकि परम्परागत शिल्पकार के बिना मानव सभ्यता, संस्कृति तथा विकास की बातें एक कल्पना ही लगती हैं। शिल्पकारों ने प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक …

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भीम का बनाया यह मंदिर अधूरा रह गया

छत्तीसगढ़ के जांजगीर में कलचुरीकालीन भव्य विष्णु मंदिर है। यह जांजगीर नगरी कलचुरी राजा जाज्वल्य देव की नगरी है तथा विष्णु मंदिर कल्चुरी काल की मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में जड़े पत्थर शिल्प में प्राचीन परंपरा को दर्शाया गया है। अधूरा निर्माण होने के कारण इसे “नकटा” मंदिर …

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ऐसी कौन सी घास है जो जन्म से मरण तक साथ निभाती है?

मनुष्य का बांस से साक्षात्कार अग्नि के माध्यम से हुआ, अग्नि प्रज्जवलित करने के  लिए उसने अरणी पर परणी का घर्षण कर अग्नि का संधान किया। वर्तमान में विशेष समुदायों में विशेष अवसरों पर इसी तरह अग्नि प्रकट करने का विधान दिखाई देता है। जन्म के बाद बाँस से व्यक्ति …

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