Home / इतिहास (page 26)

इतिहास

इतिहास विभाग में वैदिक साहित्य में इतिहास, पौराणिक इतिहास, जनजातीय कथाओं में इतिहास, रामायण, महाभारत एवं जैन-बौद्ध ग्रंभों में इतिहास, भारतीय राजवंशो का इतिहास, विदेशी आक्रमणकारियों (मुगल एवं अंग्रेज) का इतिहास, स्वात्रंत्येतर इतिहास, बस्तर भूमकाल विद्रोह, नक्सल इतिहास, घुमक्कड़ परिव्राजक ॠषि मुनि तथा आदिम बसाहटों के इतिहास को स्थान दिया गया है।

मोटियारी घाट की बंजारी माता : नवरात्रि विशेष

ग्राम्य जीवन जीने वाला लोक मानस बड़ा सीधा, सरल, सहज, भोला भाला, उदार और आस्थावान होता है। प्रकृति का हर उपदान उसके लिए देवता है। प्रकृति के कण–कण में देवत्व की अनुभूति करता है। इसलिए लोक समाज के इर्द–गिर्द देवी–देवताओं के स्थल बहुतायत रूप से मिलते है। यह भी देखा …

Read More »

भारत माता के बहादुर लाल : लाल बहादुर शास्त्री

बात वर्ष 1928 की है, एक 24 वर्षीय नवयुवक का विवाह होने जा रहा था। नवयुवक था अत्यंत आदर्शवादी। अपने तत्वों के अनुसार जीवन जीने वाला। समाज में समानता स्थापित हो इसलिए उसने अपना उपनाम का भी त्याग कर दिया था। काशी विद्यापीठ से स्नातक पदवी प्राप्त करने के पश्चात् …

Read More »

कोडाखड़का घुमर का अनछुआ सौंदर्य एवं शैलचित्र

बस्तर अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। केशकाल को बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है, यहीं से बस्तर की प्राकृतिक सुन्दरता अपनी झलक दिखा जाती है। बारह मोड़ों वाली घाटी, ऊँचे-ऊँचे साल के वृक्ष, टाटमारी, नलाझर, मांझिनगढ़ और कुएमारी जैसे अनेक मारी (पठार) हैं। मारी में अनेक शैलचित्र, …

Read More »

जानिए ऑपरेशन पोलो क्या है?

भारत देश पर ब्रिटेन के लंबे शोषण, उत्पीड़नपूर्ण औपनिवेशिक शासन से 1947 मे स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लौह व्यक्तित्व और अदम्य साहस के धनी तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से 562 देशी रियासतों मे से अधिकतर का भारत विलय हो गया। जिन्ना जहां एक ओर द्विराष्ट्र …

Read More »

दक्षिण कोसल में गाणपत्य सम्प्रदाय एवं प्राचीन गणपति प्रतिमाएँ

भारतीय धार्मिक परंपरा में गाणपत्य सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान माना गया है। वैदिक काल से देव के रूप में गणपति की प्रतिष्ठा हो गई थी। ऋग्वेद में रूद्र के गण मस्तों का वर्णन किया गया है।1 इन गणों के नायक को गणपति कहा गया है। पौराणिक देवमण्डल में गणपति का …

Read More »

रींवा उत्खनन से प्रकाशित मृतिका स्तूप

दक्षिण कोसल/छत्तीसगढ़ प्रदेश के पूर्व में झारखण्ड और उड़ीसा, उत्तर में उत्तरप्रदेश, पश्चिम में महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश और दक्षिण में आन्ध्रप्रदेश तथा तेलंगाना की सीमाएं हैं। रींवा ( 21*21’ उत्तरी अक्षाश एवं 81*83’ पूर्वी देशांश ) के मध्य छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से 25 कि. मी. दूरी पर पूर्वी दिशा …

Read More »

माँझीनगढ़ के शैलचित्र एवं गढ़मावली देवी जातरा

भारतीय ग्राम्य एवं वन संस्कृति अद्भुत है, जहाँ विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, देवी-देवता, प्राचीन स्थल एवं जीवनोपयोगी जानकारियाँ मिलती हैं। सरल एवं सहज जीवन के साथ प्राकृतिक वातावरण शहरी मनुष्य को सहज ही आकर्षित करता है। ऐसा ही एक स्थल छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला मुख्यालय से 60 कि.मी.की दूरी पर …

Read More »

श्रावणी उपाकर्म : विद्याध्यन प्रारंभ करने का पर्व

वैदिक काल में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रावणी पर्व के रुप में मनाया जाता था। इसे श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है। उस काल में वेद और वैदिक साहित्य का स्वाध्याय होता था। लोग प्रतिदिन वैदिक साहित्य का पठन करते थे, लेकिन वर्षा काल में वेद …

Read More »

जहां प्रकृति स्वयं करती है शिव का जलाभिषेक

छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल जांजगीर-चांपा जिले के अति पावन धरा तुर्रीधाम शिवभक्तों के लिए अत्यंत ही पूजनीय है। सावन मास में हजारों की संख्या में शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर तुर्रीधाम पहुंचते है। स्थानीय दृष्टिकोण से यहाँ उपस्थित शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय है। यह शिवालय सक्ति-चांपा मार्ग …

Read More »

महादेव ने जहाँ पत्थर पर डमरु दे मारा : सावन विशेष

बस्तर भूषण को बस्तर का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इस गंथ के लेखक ने अपने मित्र तहसीलदार द्वारा साझा किया गया एक संस्मरण का उल्लेख करते हुए लिखते हैं- “एक मित्र जो कोण्डागाँव में तहसीलदार थे, मुझसे कहते थे कि बड़ाडोंगर (बस्तर रियासत में दो डोंगर है, अर्थात …

Read More »