क्रांतिकारी वीर राम सिंह पठानिया जन्म दिवस विशेष आलेख सामान्यतः लोग जानते हैं कि अंग्रेजों की हड़प नीति 1857 के आसपास शुरु हुई। पर इतिहास गवाह है कि इस हड़प नीति के विरुद्ध अद्भुत साहस के प्रतीक इस 24 वर्षीय नवयुवक ने अपने मुट्ठी भर साथियों के बल पर अंग्रेजी …
Read More »स्वाभिमान की चिंगारी क्राँति का दावानल बनी
सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मंगल पाण्डेय बलिदान दिवस विशेष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रान्ति को सब जानते हैं। यह एक ऐसा सशस्त्र संघर्ष था जो पूरे देश में एक साथ हुआ। इसमें सैनिकों और स्वाभिमान सम्पन्न रियासतों ने हिस्सा लिया । असंख्य प्राणों की आहूतियाँ हुईं थी । इस संघर्ष …
Read More »प्राचीन स्थापत्य कला में हनुमान : छत्तीसगढ़
श्री हनुमान जन्मोत्सव विशेष आलेख हमारे देश में मूर्ति पूजा के रूप में महावीर हनुमान की पूजा अत्यधिक होती है क्योंकि प्रत्येक शहर, कस्बों तथा गांवों में भी हनुमान की पूजा का प्रचलन आज भी देखने को मिलता है। हनुमान त्रेतायुग में भगवान राम के परम भक्त तथा महाभारत के …
Read More »वाल्मीकि रामायण में वर्णित पेड़ पौधे
भगवान श्री राम के जीवन का लंबा समय वनवास में व्यतीत हुआ था, अतः वनों से भारतीय संस्कृति का सम्बंध उनके काल से ही घर-घर में पहुँच चुका था जब वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना कर दी थी। लेकिन आजकल वाल्मीकि जी द्वारा सँस्कृत में रचित पूर्ण रामायण कम …
Read More »राम की दक्षिणापथ यात्रा में दक्षिण कोसल
आर्य संस्कृति के दक्षिण में प्रसार के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भूमिका सर्वोपरि है। ऋग्वेद में विंध्याचल के आगे क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता विंध्य पर्वत से ही उत्तर व दक्षिण भारत को विभाजित किया गया है। राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवासी जीवन में दक्षिण क्षेत्र …
Read More »चिरमिरी बरतुंगा कालरी में 14 वीं शताब्दी का सती मंदिर
चिरमिरी बरतुंगा कालरी में प्राचीन देवालय के अवशेष स्थित हैं। भग्नावशेषों में यहाँ बहुत सारे सती स्तंभ हैं, जो इस क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं। यहाँ नवरात्रि में जातीय एवं जनजातीय समाज के लोग सती माता की आराधना एवं उपासना करते हैं। प्राचीन सती मंदिर बरतुंगा चैत्र नवरात्र के दिनों …
Read More »मल्हार की तपोलीन डिडिनेश्वरी देवी
अरपा, लीलागर और शिवनाथ नदी के बीच में बसी है प्राचीन नगरी मल्हार। कई धर्म, संस्कृतियों की धरोहरों को समेटे हुए यह कलचुरियों का गढ़ रही है। भगवान शिव के उपासक कलचुरि नरेश ने यहां मल्लाषरि, मल्लारी शिव का मंदिर बनवाया था। मल्लासुर दैत्य का संहार करने वाले शिव का …
Read More »बिंद्रानवागढ़ की जमींदारी
बिंद्रानवागढ जमींदारी का इतिहास शुरु होता है लांजीगढ के राजकुमार सिंघलशाह के छुरा में आकर बसने से। तत्कालीन समय में यहां भुंजिया जाति के राजा चिंडा भुंजिया का शासन था। यहां की जमींदारी मरदा जमींदारी कहलाती थी। राजकुमार सिंघलशाह चूंकि एक राजपुत्र था, उसके छुरा में आकर बसने से चिंडा …
Read More »नवसस्येष्टि यज्ञ :पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भ
भारत पर्वोत्सव की परम्परा अत्यन्त प्राचीन रही है फिर चाहे वह कोई भी त्यौहार क्यो न हो, हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति में इसकी न केवल सदीर्घ परम्परा मौजुद है वरन् कई-कई प्रचलित रीतियों के साथ-साथ लोकमान्यताओं, अध्यात्मिक चेतना एवं धार्मिर्क आस्थाओं के बीज भी विद्यमान है। ऋतुराज वसंत की पूर्णाहुति पर …
Read More »वसंत पंचमी से रंगपंचमी तक मनाया जाता रहा मदनोत्सव
प्रकृति से लेकर चराचर जगत का अभिनव स्वरूप जब नित निखरता सृजन की ओर अग्रसर होता है तो ऐसे समय में ऋतुराज वसंत का पदार्पण होता है। सूर्य देव के उत्तरायण होते ही समूची प्रकृति भी अपना कलेवर बदलती मनमोहक हो उठती है। वसंत के आगमन से पेड़- पौधों के …
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