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बस्तर का हल्बा विद्रोह और ताड़ झोंकनी

काकतीय (चालुक्य) वंश के राजा दलपत देव (1716-1775) की दलपत देव की पटरानी रामकुँअर चँदेलिन थी एवं छ: अन्य रानियाँ थी। पटरानी के पुत्र का नाम अजमेर सिंह और दूसरी रानी के पुत्र का नाम दरियाव देव था। दरियाव देव उम्र में बड़ा था, इसलिए राजगद्दी पर अपना अधिकार जमा लिया। पटरानी का पुत्र होने के नाते राजगद्दी का वास्तविक हकदार अजमेर सिंह था, किन्तु वह उम्र में छोटा (अवयस्क) था।

युवावस्था प्राप्त कर अजमेर सिंह ने बड़ेडोंगर को अपने अधीन कर लिया, और स्वयं को बड़ेडोंगर का राजा घोषित कर दिया। खुद के सैन्य बल और कांकेर राजा से सहायता लेकर जगदलपुर की गद्दी हेतु दरियाव देव पर आक्रमण कर दिया।

दरियाव देव सेना लेकर उत्तर की ओर बढ़े, किन्तु परास्त हो गये । किसी तरह जान बचाकर भाग निकले और जैपुर (ओड़िसा) राज्य में शरण लिया । राजगद्दी पर अजमेर सिंह ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया, तथा सम्पूर्ण बस्तर के राजा बन गये ।

अपने आश्रयदाता जैपुर राजा से सहायता प्राप्त कर दरियाव देव बस्तर का राजगद्दी पाने के लिए जोड़-तोड़ आरंभ कर दिया । मराठों से भी सहयोग की प्रार्थना की, मराठों ने सशर्त सहयोग करना स्वीकार कर लिया । जैपुर राजा और मराठों से सैनिक सहायता प्राप्त कर दरियाव देव ने बस्तर पर आक्रमण कर दिया ।

जैपुर और मराठों की संयुक्त सेना से अजमेर सिंह परास्त हो गये । अजमेर सिंह भाग कर फिर बड़ेडोंगर आ गये । क्योंकि बड़ेडोंगर में हल्बा लोग अजमेर सिंह के प्रबल समर्थक थे, इसलिए उन्हें बड़ेडोंगर में हर प्रकार से सहायता मिलती थी । बड़ेडोंगर में पर्याप्त सैन्यबल इकट्ठा कर दरियाव देव पर पुनः आक्रमण कर दिया । पर दरियाव देव अब युद्ध करने के बजाय छल से अजमेर सिंह को परास्त करना चाहते थे ।

दरियाव देव ने एक कुटिल योजना बनाकर, अजमेर सिंह को समझौता के लिए आमंत्रित किया । अजमेर सिंह बिना किसी सैन्यबल के जगदलपुर पहुँच गये । कुछ समझ पाते इससे पूर्व ही योजना के अनुसार दरियाव देव ने अजमेर सिंह पर तलवार से आक्रमण कर दिया । जान बचाकर भाग निकलने में तो अजमेर सिंह सफल हो गये, किन्तु गंभीर रुप से घायल होने के कारण कुछ ही समय उपरान्त उनकी मृत्यु हो गई ।

हल्बा (डोंगर) विद्रोह:-

अजमेर सिंह की मृत्यु के पश्चात दरियाव देव ने बड़ेडोंगर की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया । चूँकि बड़ेडोंगर क्षेत्र के मांझी, मुखिया, हल्बा प्रमुख अजमेंर सिंह के प्रबल समर्थक थे । तथा उनको हर संभव मदद के लिए सदैव तैयार रहते थे, इसलिए दरियाव देव उनसे कुपित थे । उन्होंने हल्बा लोगों को हर तरह से प्रताड़ित करना शुरु कर दिया ।

दरियाव देव के इस व्यवहार से हल्बा लोग संगठित होने लगे, और दरियाव देव के विरुद्ध विद्रोह कर दिया जिसे हलबा विद्रोह या बड़ेडोंगर विद्रोह के नाम से जाना जाता है । इस विद्रोह को दरियाव देव ने कुचलने का प्रयास किया तथा निर्ममता पर उतर आये । अनेक हल्बा प्रमुखों की आँखें फोड़ दी गई ।

कुछ लोगों को चित्रकोट जलप्रपात में जिंदा फेंक दिया गया । इस तरह हल्बा लोगों को पूरी तरह से खतम करने की कुटिल एवं क्रूर योजना बनाई थी । हल्बा लोग सैनिक हुआ करते थे तथा वीर एवं लड़ाकू माने जाते थे । दरियाव देव ने हल्बा लोगों से कहा- तुम अपने आप को शक्ति सम्पन्न, वीर, साहसी तथा निडर मानते हो इसलिए मैं तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता हूँ।

हल्बा वीरों ने परीक्षा देना स्वीकार कर लिया । तब राजा दरियाव देव ने आदेश दिया कि प्रंत्येक वीर हल्बा को एक-एक ताड़ वृक्ष के नीचे खड़ा किया जावे । राजा के आदेशानुसार एक-एक ताड़ वृक्ष के नीचे एक-एक हल्बा को खड़ा कर दिया गया । राजा ने फिर आदेश दिया ताड़ का वृक्ष काटा जावे, तथा कटा वृक्ष गिरने लगे तो उसके नीचे खड़ा हल्बा उसे अपने हाथ में थाम ले ताकि वृक्ष जमीन पर न गिर पाये ।

जो हलबा ताड़ वृक्ष को हाथ से नहीं थाम पायेगा उसे इस परीक्षा में असफल माना जायेगा तथा मृत्यु दण्ड से दण्डित किया जावेगा । यह जानते हुए कि गिरते वृक्ष को हाथ से थामना संभव नही है और मृत्यु तय है, पर राजा तो षडयंत्रपूर्वक मृत्यु दण्ड ही देना चाहता है । इसलिए हल्बा योद्धाओं ने सम्मान के साथ मरना उचित समझा और राजा के इस प्रस्ताव को मान लिया ।

योजनानुसार ताड़ वृक्ष काटे गये, और उन्हें हाथों से थामते हुए हल्बा योद्धा ताड़ के वृक्ष में दबकर मरते गये । जो वृक्ष से बचे उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया गया । इस दर्दनाक घटना को आज भी इतिहास में हल्बा लोगों की ”ताड़ झोकनी“ के नाम से जानते हैं।

आलेख

घनश्याम सिंह नाग
ग्राम पोस्ट-बहीगाँव
जिला-कोण्डागाँव छ.ग.

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