(१)तन के तार का मूल्य नही, मन का तार बस भीगे जबपूर्ण चंद्र हो रस तरंग,बस प्रेम भाव ही जीते जब। धन धान्य धरा और धूम धाम, धरती करती है ठिठोली जब।मुरली की तान, करुणा निधान,प्रिय मोर मुकुट है होली तब। (२)बृजराज कृष्ण, बृजराज काव्य, बृजराज धरा, यमुना तरंग।मोहन के …
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बस्तर की फ़ागुन मड़ई और होली के रंग
होली हंसी- ठिठोली और रंग -मस्ती से सराबोर होती है। बस्तर के जनजातीय समाज द्वारा होली अपने अलग अंदाज में मनाई जाती है। वनवासी अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को संजोए हुए होली मनाते हैं, दंतेवाड़ा के माई दरबार में। छत्तीसगढ़ के बस्तर में दंतेवाड़ा जहां बिराजी हैं आदिवासियों की आराध्य देवी …
Read More »प्रतिमा शिल्प में अंकित स्त्री मनोविनोद
प्राचीनकाल के मंदिरों की भित्ति में जड़ित प्रतिमाओं से तत्कालीन सामाजिक गतिविधियाँ एवं कार्य ज्ञात होते हैं। शिल्पकारों ने इन्हें प्रमुखता से उकेरा है। इन प्रतिमाओं से तत्कालीन समाज में स्त्रियों के कार्य, दिनचर्या एवं मनोरंजन के साधनों का भी पता चलता है। कंदुक क्रीड़ा कर मनोविनोद करती त्रिभंगी मुद्रा …
Read More »भगवा ध्वज लहराया है
स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।रामराज्य की आहट लेकर, नया सवेरा आया है । जाति- पाँति के बंधन टूटे, टूट गई मन की जड़ता।ज्वार उठा भाईचारे का, धुल गई कड़वी कटूता।निर्भय होकर नर- नारी सब, अपने दायित्व निभाते उत्पीड़न करने वालों का, नहीं कहीं भय-साया है।स्वाभिमान जागा लोगों …
Read More »वल्लभाचार्य की जन्मभूमि चम्पारण एवं चम्पेश्वर महादेव
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …
Read More »शिव मंदिर देवखूंट का पुरातात्विक विश्लेषण
ग्राम देवखूंट 20॰ 19’ उत्तरी अक्षांस तथा 81॰ 87’ पूर्वी देशांतर पर, धमतरी-सिहावा मार्ग पर ग्राम बिरगुड़ी के आगे टेमनीपारा नामक बाजार मोहल्ले से बायें तरफ लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर जंगली तथा कच्चे रास्ते में दुधावा बाँध के ऊपर, बाँध की तलहटी में स्थित है जो वर्तमान में धमतरी …
Read More »एक अकेला पार्थ खडा है, भारत वर्ष बचाने को।
एक अकेला पार्थ खडा है, भारत वर्ष बचाने को। सभी विपक्षी साथ खड़े हैं, केवल उसे हराने को।। भ्रष्ट दुशासन सूर्पनखा ने, माया जाल बिछाया है। भ्रष्टाचारी जितने कुनबे, सबने हाथ मिलाया है।। समर भयंकर होने वाला, आज दिखाई देता है। राष्ट्र धर्म का क्रंदन चारों ओर सुनाई देता है।। …
Read More »पौराणिक आस्था का मेला शिवरीनारायण
आदिकाल से छत्तीसगढ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहां अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियां पल्लवित व पुष्पित हुई हैं। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से भी जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौध्द धर्मों का समन्वय रहा है। वैष्णव …
Read More »छत्तीसगढ़ में शिवोपासना की परंपरा
छत्तीसगढ़ वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों का विकास केंद्र रहा है। यहां प्राप्त मंदिरों, देवालयों और उनके भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यहां वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन धर्म एवं संस्कृतियों का प्रभाव रहा है। शैवधर्म का छत्तीसगढ़ में व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। जिसका प्रमाण …
Read More »बस राम लिखूं
रघुकुल गौरव, अवध सिया के, दशरथ कोशला राम लिखूं। या रावण हंता, दुष्ट दलंता, लंका विजई सम्मान लिखूं। है अनुज दुलारे भरत भाल, जिन पर मैं अपना स्वास लिखू।है अनुज दुलारे लखन लाल, जिन पर मैं अपना विश्वास लिखूं। ये सम्मानित राघव रघु कुल, ना काम क्रोध मद लोभ लिखूं।केवट …
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