Home / 2019 (page 3)

Yearly Archives: 2019

बीरनपाल की झारगयाइन देवी जातरा : बस्तर

बस्तर का आदिवासी समुदाय देवी देवताओं की मान्यतानुसार कार्य करता है, वर्ष में इन देवी देवताओं की आराधना करने के लिए जातरा पर्व का आयोजन विभिन्न परगनों में होता है। एक परगना में परगना में चालिस पचास गांवों का समूह होता है, जो अपने आराध्य देवी-देवता को प्रशन्न करने के …

Read More »

बस्तर के सितरम गाँव का मंदिर जहाँ नाग हैं विरासत के पहरेदार

बात सितरम गाँव की है जिसके निकट एक पहाड़ी टीले पर बस्तर की एक चर्चित प्राचीन परलकोट जमींदारी का किला अवस्थित था। यह स्थान वीर गेन्दसिंह की शहादत स्थली के रूप में भी जाना जाता है चूंकि यहीं एक इमली के पेड़ पर लटका कर आंग्ल-मराठा शासन (1819 से 1842 …

Read More »

शरद पूर्णिमा : लोक मान्यता एवं वैज्ञानिक पक्ष

तीज त्यौहारों एवं उत्सवों के युक्त भारतीय संस्कृति में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिसमें हम सूर्य, चन्द्रमा एवं ग्रहों से लेकर वृक्ष-पौधों एवं जीव जंतुओं तक का मान करते हैं। इसी मान देने के दिन को हम त्यौहार या पर्व के रुप में मनाते है। लोक का …

Read More »

बारसूर का भुला दिया गया वैभव : पेदाम्मागुड़ी

दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा जिला) के बारसूर को बिखरी हुई विरासतों का नगर कहना ही उचित होगा। एक दौर में एक सौ सैंतालिस तालाब और इतने ही मंदिरों वाला नगर बारसूर आज बस्तर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। कोई इस नगरी को दैत्य वाणासुर की नगरी कहता है …

Read More »

बस्तर में शाक्त आस्था का केंद्र : माँ दंतेश्वरी

आज के समय में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय हो गया है। यहाँ दंतेश्वरी मंदिर की अवस्थिति के कारण इसे एक धार्मिक पर्यटन नगर होने का गौरव प्राप्त है। राजा की कुल अधिष्टात्री देवी का क्षेत्र यहाँ होने के होने के कारण दंतेवाड़ा को रियासत काल में भी विशेष दर्जा प्राप्त था …

Read More »

छत्तीसगढ़ में गाँधी का प्रवास व प्रभाव

दुनिया के इतिहास में मोहनदास करमचंद गाँधी, जिन्हें हम महात्मा गाँधी के रूप में जानते एवं पहचानते है, एक अमिट नाम है। भारत में अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों में महात्मा गाँधी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे पूरे देश के भीतर एक राजनैतिक, सामाजिक एवं …

Read More »

दक्षिण कोसल के यायावर व्याध : सरगुजा एक अध्ययन

छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित प्रदेश है, यहाँ के कुल क्षेत्रफ़ल का 43.85% वन हैं, जो सरगुजा से बस्तर तक फ़ैला हुआ है एवं इन वनों भिन्न-भिन्न जनजातियाँ निवास करती हैं। छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियों में माड़िया, मुरिया, दोरला, उरांव, कंवर, बिंझवार, बैगा, भतरा, कमार, हल्बा, सवरा, नागेशिया, मंझवार, …

Read More »

दक्षिण कोसल में लघु पत्रिका आंदोलन : एक वो भी ज़माना था !

आधुनिक हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा में लघु पत्रिका आंदोलन का भी एक नया पड़ाव आया था। देश के हिन्दी जगत में मुख्य धारा की पत्रिकाओं से इतर यह एक अलग तरह की साहित्यिक धारा थी ।  भारतीय इतिहास में दक्षिण कोसल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में इस नयी …

Read More »

नाचा : छत्तीसगढ़ का लोकनाट्य

छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठ भूमि मुख्यतः यहाँ का ग्रामीण जनजीवन है ।यहाँ की ग्रामीण संस्कृति में लोकनाटकों का प्रारंभ से ही बड़ा महत्व रहा है । छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक सौम्यता के दर्शन यहाँ के देहातों की नाट्य मण्डलियों के सीधे -सादे ,आडम्बरहीन परन्तु रोचक कार्यक्रमों में होते हैं। …

Read More »

चीन को टक्कर देना है तो देश के परम्परागत शिल्पकारों को प्रोत्साहित करना होगा

जहाँ पर मानव सभ्यता के विकास का वर्णन होता है वहां स्वत: ही तकनीकि रुप से दक्ष परम्परागत शिल्पकारों के काम का उल्लेख होता है। क्योंकि परम्परागत शिल्पकार के बिना मानव सभ्यता, संस्कृति तथा विकास की बातें एक कल्पना ही लगती हैं। शिल्पकारों ने प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक …

Read More »