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दंतेश्वरी मंदिर कोण्डागाँव बस्तर

कोण्डागाँव का मावली मेला, जहाँ एकत्रित होते हैं देवी-देवता

नारायणपुर मड़ई के पश्चात कोण्डागांव का प्रसिद्ध मावली मेला कल प्रारंभ हुआ, यह मेला होली के एक सप्ताह पूर्व भरता है। फ़ागुन माह में आयोजित होने वाले इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ कई परगनों के देवी देवता इकट्ठे होते हैं। मेले का अर्थ ही सम्मिलन होता है, इसी देवी-देवता सम्मिलन के लिए इस मेले का आयोजन किया जाता है।

होली पर्व से ठीक एक स्प्ताह पूर्व आयोजित इस वार्षिक मेले में आस-पास के ग्रामों जैसे पलारी, भीरागांव, भेलवापदर, डोंगरीपारा, बनजुगानी, कोपाबेड़ा, फरसगांव के ग्राम देवी-देवताओं माटी पुजारी, गायता का पूरे धार्मिक विधि-विधान के साथ महासंगम होता है।

डोली

 

इन देवी-देवताओं में आदिवासियों की आराध्य मां दंतेश्वरी, जरही मावली, सियान देव, चौरासी देव, बुढ़ाराव, गपागोसीन, देशमात्रा देवी, सेन्दरी लगुंर माता, दुलार दई, कुरला दई, कलार बुढ़हा, हिंगलाजीन, बाघाबसीन जैसे देवी-देवता प्रमुख है।

सभी देवी-देवताओं का पूरे धार्मिक विधि-विधान ढोल नगाड़ों, मोहरी, तोड़ी, मांदर एवं शंख ध्वनि के साथ भव्य पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही संबंधित गांव के गायता, पुजारी, पटेल, कोटवार, सिरहा का भी सम्मान होता है।

चकरखेलना, देवता खेलाना

ग्रामवासी बताते हैं कि इस अनुष्ठान के लिए देवी की विधि विधानपूर्वक अनुमति ली जाती है, उसके पश्चात सभी परगनों के देवी-देवताओं को सम्मिलित होने के लिए सिरहा/कोटवार द्वारा निमंत्रण भेजा जाता है। इसके अलावा नागरिकों को निमंत्रण देने के लिए आम की टहनी के साथ साप्ताहिक हाट बाजारों में मुनादी की जाती है।

यह मेला कल 12 मार्च मंगलवार को प्रारंभ हुआ, इसके लिए सोमवार को निशा जात्रा रस्म निभाई गई तथा मेले को निर्विघ्न सम्पन्न कराने के लिए चौरासी देव द्वारा बाजार स्थल में सभी कोणो में कील ठोकने की परम्परा का निर्वहन किया गया।

चम्पा एवं गेंदे के फ़ूल की माला

मेले की सुबह मुख्य पूजा स्थल मावली माता के मंदिर में पुजारी एवं पटेल हजारी, चम्पा, गुड़हल, गेंदा आदि फूलों से मंडप को सुसज्जित किया जाता  है और अपरान्ह 2 बजे कुम्हारपारा स्थित एक अन्य पुरातन मंदिर जहां इष्टदेवी बुढ़ीमाता (डोकरीदेव) के मंदिर में सभी पुजारी, सिरहा, गायतागण एकत्रित होकर ढोल नंगाड़े के साथ माता की पालकी को मेला स्थल में लाते है।

बुढ़ीमाता कोण्डागांव की सभी समुदायों की इष्टदेवी मानी जाती है देवी को लाने के पश्चात सभी पुजारी द्वारा नगर के अधिकारी एवं जनप्रतिनिधिगणों के अगवानी की रस्म की जाती है। मेला स्थल की परिक्रमा दैवीय अनुष्ठान का एक प्रमुख अंग है।

खिरेन्द्र यादव कहते हैं कि पहले ग्राम पलारी से आई हुई माता डोली एवं लाट के द्वारा पूरे बाजार स्थल का भ्रमण करती है। तत्पश्चात उसके पीछे अन्य ग्रामों के देवी-देवताओं एवं ग्रामों की डोलियों उसका अनुशरण करते हुए परिक्रमा कराया जाता है।

इस दौरान देवी-देवताओं की डोलियों जिन्हें काहार कंधे में रखे हुए खेलाते हैं, इन सभी पारम्परिक प्रदर्शन के पश्चात विभिन्न परगनाओं से आए देवी-देवताओं द्वारा मेला प्रारंभ करने की अनुमति प्रदान की जाती है।

खिरेन्द्र यादव कोण्डागांव बस्तर

मेला प्रारंभ होने पर रात को आदिवासी नृत्य करते हैं तथा उत्सव को मनाते हैं।  इस तरह यह मेला एक सप्ताह तक चलता है, जिसमें दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएं भी बिकने आती हैं तथा खई-खजानी की दुकाने भी सजी रहती हैं। मीना बाजार, झूले, भी लगते हैं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह देवी देवताओं की पूजा के साथ मेले का आनंद लिया जाता है।

 

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खिरेन्द्र यादव कोण्डागाँव बस्तर

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One comment

  1. बहुत सुन्दर लेखन

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