Home / इतिहास / आज़ादी के लिए प्राणों की परवाह न करने वाली वनबाला दयावती : स्वतंत्रता दिवस विशेष

आज़ादी के लिए प्राणों की परवाह न करने वाली वनबाला दयावती : स्वतंत्रता दिवस विशेष

“जिस रोज 144 दफा लगाया गया था, उस रोज तमोरा गांव में सभा थी। वहां पर मैं, मेरी माँ और कुछ अन्य स्त्रियां सभा में गई। हम लोगों को सभा में जाने से किसी ने रोका नहीं। कुरुभाठा, ढोंगा, धौराभाठा, डूमरडीह इत्यादि के लोगों को डोर लगा के रोक रहे थे। हम लोग “गांधी चौरा” में पांव पड़कर सभा में स्त्रियों के लिए नियुक्त स्थान में बैठ गए। हम लोग बैठ ही पाए थे कि स्त्रियाँ और आदमी भिड़ गए, पुलिस वाले अलग कर रहे थे लेकिन फिर भी कोई अलग नहीं हो रहे थे। इतने में पुलिस वाले बेंत बरसाना शुरू कर दिए। बाई लोगों को भी पुलिस वालों ने मारा। हम लोगों को पुलिस वालों ने संगीन से हटाने की कोशिश की लेकिन हम लोग अपनी जगह से नहीं हटे। मार के डर से मर्द लोग भाग गए लेकिन हम लोग अपनी जगह डटे रहे। स्त्रियों ने अपना छाती सामने कर कहा कि तुम हमको मार डालो लेकिन हम अपनी जगह से नहीं हटेंगे। हम लोग वहीं पालथी मारकर बैठ गए। साहब ने हमसे कहा कि हम तुमसे बात करेंगे। मैंने कहा कि हम दुश्मन की बात नहीं सुनना चाहते। हम लोग पुलिस की रुकावट होते हुए भी सत्याग्रहियों को जंगल पहुंचा दिए। पुलिस वाले भाग गए, हमको रोक नहीं सके।”

यह बयान उस 16 वर्षीय वनबाला स्व दयावती कंवर (दीवान) गवाह क्रमांक 28 का है। उसने सी पी एंड बरार कान्ग्रेस कमेटी द्वारा ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी की अध्यक्षता में गठित जांच समिति के समक्ष 14 अप्रेल 1931 को दिया था। उस जांच समिति में सर्व श्री यती यतनलाल, पं भगवती प्रसाद मिश्र एवं मौलाना रऊफ जी सदस्य थे।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रतिष्ठित “जंगल सत्याग्रह” वस्तुतः छत्तीसगढ़ की देन है। महात्मा गांधी की सन 1920 के प्रथम छत्तीसगढ़ यात्रा से उत्साहित सिहावा-नगरी अंचल के वनवासियों ने जनवरी 1922 में ब्रिटिश वन अधिनियम के विरोध में सत्याग्रह प्रारम्भ किया था। सन 1862 में ब्रिटिश सरकार ने अधिकांश वन क्षेत्रों को “आरक्षित वन” घोषित कर वनवासियों को निस्तारी के लिए प्रवेश को प्रतिबंधित ही नहीं वरन उन्हें वन भूमि से बेदखल करना शुरू कर दिया था। फलतः वनों पर आश्रित वनवासियों की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया था। उस सत्याग्रह के 32 प्रमुख नेताओं को कारावास तथा सैंकड़ों वनवासियों की सार्वजनिक पिटाई एवं संपत्ति जब्त करने की कार्यवाही कर आंदोलन का निर्मम दमन किया गया था।

सत्याग्रही दयावती कंवर का दुर्लभ चित्र डॉ घनाराम साहू जी के सौजन्य से प्राप्त

वीरांगना दयावती कंवर से संबंधित घटना सन 1930 की है। महासमुंद शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर वन क्षेत्र के बीच बसे तमोरा गांव में सावन अमावस्या के दिन “सावनाही त्योहार” मनाया जा रहा था। किसानों के कुछ मवेशी गांव के निकट के आरक्षित वन में प्रवेश कर गये थे, जिसे वन चौकीदार बिसाहू राम ने पकड़ लिया था। इसी मामले को लेकर वन विभाग और गांव वालों के बीच विवाद हुआ जो तहसील कोर्ट तक पहुंच गया।

कोर्ट से किसानों के पक्ष में फैसला आने से तमोरा सहित अन्य वन ग्राम वासियों में उत्साह का संचार हुआ और मन ही मन बड़े आंदोलन की बात सोंची जाने लगी। इस बात की भनक रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी को लगी और श्री शंकर राव गनौदवाले एवं यती यतनलाल जी को प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया।

तमोरा के आसपास के 15 से अधिक ग्रामों से 90 सत्याग्रहियों के चयनोपरांत 8 सिंतबर से सत्याग्रह शुरू हुआ। प्रतिदिन सत्याग्रही वन में प्रवेश कर गिरफ्तारी देने लगे। 12 सिंतबर को तमोरा में धारा 144 लगा दी गई थी और सभा में जाने से अन्य गांव वालों को रोका गया किन्तु तमोरा गांव वालों को नहीं रोका गया। वीरांगना दयावती सभा में अपनी माँ और अन्य महिलाओं के साथ गई थी।

पुलिस ने 5 मिनट में सभा स्थल को खाली करने का आदेश दिया और खाली नहीं होने पर सत्याग्रहियों के ऊपर बेंत बरसाने लगे। सभा में भगदड़ मची और पुलिस एवं सत्याग्रहियों के बीच महिलाएं आ गई । महिलाओं पर भी बेंत प्रहार हुआ लेकिन वे वहां से नहीं हटी। तब सशत्र पुलिस बंदूक के संगीन से महिलाओं को हटाने लगी। इससे महिलाएं आक्रोशित होकर पुलिस को चुनौती देने लगीं। महिलाओं ने मरना स्वीकार किया, हटना नहीं।

वीरांगना दयावती से पुलिस उपनिरीक्षक मिर्जा बेग ने बातचीत का प्रस्ताव दिया, जिसे उसने अस्वीकार कर दिया। अंततः पुलिस को पीछे हटना पड़ा और सत्याग्रही महिलाओं के संरक्षण में वन में प्रवेश करने में सफल रहे। यह सत्याग्रह 24 सिंतबर तक चला, आसपास के गांवों में सभा होती थी और चुने हुए सत्याग्रही तमोरा आकर वन कानून तोड़कर गिरफ्तारी देते थे।

ठाकुर प्यारे लाल सिंह द्वारा दयावती के बयान की प्रति

वीरांगना दयावती ने अपने बयान में बताया था कि महिलाएं सभा स्थल में जाने के पूर्व “गांधी चौरा” को प्रणाम करने गई थीं। यह इस गांव की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े होने का ऐतिहासिक प्रमाण है। 1930 के पूर्व भी इस गांव में आंदोलन हुआ रहा होगा क्योंकि अन्य स्थानों में गांधी चौरा स्थापित होने का विवरण नहीं मिलता है। गांव वालों को इस चौरा के निर्माण काल की जानकारी नहीं है।

इन पंक्तियों के लेखक का अनुमान है कि इस क्षेत्र में 1922 के जंगल सत्याग्रह के समय भी वनवासियों की गतिविधियां हुई होंगी तभी गांधी चौरा बनाया गया होगा। 8 वर्षो में वही गांधी चौरा लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतिक बन गया था। सन 1857 के गदर के दौरान इस क्षेत्र में वीर सुरेंद्र साय की गतिविधियों से सम्बंधित लोक गाथाएं जनमानस में है।

सत्याग्रह के दौरान दयावती 16 वर्ष की अविवाहित बाला थी, संभवतः उसे नाबालिग होने के कारण गिरफ्तार नहीं किया गया था। दयावती के पिता का नाम श्री बनमाली दीवान था, जो तमोरा के मालगुजार श्री रघुवीर सिंह दीवान के छोटे भाई थे लेकिन इनकी माता का नाम दयावती के वर्तमान परिजनों को स्मरण नहीं है। दयावती का विवाह धमतरी जिला के कुरूद तहसील के भुसरेंगा गांव के श्री थूकेल सिंह दीवान से हुआ था। दोनों पति-पत्नी तमोरा में ही निवास करने लगे थे।

लेखक का अनुमान है कि दयावती माता-पिता की अकेली संतान थी इसलिए श्री थूकेल सिंह दीवान “घर जमाई” लाये गए थे। इस दंपत्ति के पांच पुत्र सर्व श्री अलेन सिंह, किसुन सिंह, पंचम सिंह, उत्तम सिंह एवं भीखम सिंह हुए थे। वीरांगना दयावती और उनके संतानों को स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्रता सेनानी होने की कोई सुविधा नहीं मिली और 11 जनवरी 1992 को पंचतत्व में विलीन हो गई।

लेखक की भेंट 6 वर्ष पूर्व दयावती के चौथे और एकमात्र जीवित पुत्र श्री उत्तम सिंह दीवान से डूमरडीह गांव में अध्ययन यात्रा के दौरान हुई थी, तब उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होना बताया था। अब वे भी दिवंगत हो चुके हैं। मिली सूचना अनुसार वीरांगना का एक पोता 10 वीं उत्तीर्ण कर आई टी आई का प्रशिक्षण लिया है।

वीरांगना दयावती से संबंधित नए तथ्य सन 1980 के दशक में सर्वोदयी नेता एवं रायपुर के पूर्व सांसद स्व केयूर भूषण जी के एक लेख के माध्यम से प्रचारित हुए थे। उन्होंने लिखा था कि सत्याग्रह के दौरान अनुविभागीय अधिकारी श्री मथुरा प्रसाद दुबे द्वारा आगे बढ़ने से रोके जाने से क्रोधित होकर वीरांगना दयावती ने मजिस्ट्रेट को चांटा मार दिया था। उन्होंने यह भी लिखा था कि अनुविभागीय अधिकारी श्री दुबे ने अंग्रेज लेफ्टिनेंट की इच्छा के विरुद्ध दयावती को दंडित न कर सम्मानित किया था।

गांधी चौंरा ग्राम तमोरा

ठाकुर प्यारेलाल सिंह समिति के समक्ष दिए गए बयान में वीरांगना ने ऐसे किसी घटना की जानकारी नहीं दी थी और समिति के जांच प्रतिवेदन में भी तहसीलदार मटँगे, उपनिरीक्षक मिर्जा बेग एवं वन विभाग के रेंजर के अलावा अन्य किसी अधिकारी की तैनाती के कोई उल्लेख नहीं है।
सच क्या है ? भगवान जाने लेकिन यह तो निश्चित है वीरांगना दयावती ने अद्भुत शौर्य और वीरता का परिचय देकर सत्याग्रहियों की जान बचाकर सत्याग्रह को सफल बनाया था, जो वंदनीय है।

लेखक की भेंट 6 वर्ष पूर्व डूमरडीह के एक 90 वर्षीय बुजुर्ग से हुई थी, उसने आंखों देखा हाल बताते हुए कहा था कि उस दिन 5000 हजार से अधिक लोग तमोरा के आसपास एकत्र थे और जब लाठी चार्ज हुआ और गोली चलने की खबर फैली, तब जनता जिस बाहरा खेत से भागी थी उस खेत का धान ” कोपर चलाये ” जैसे हो गया था।

इन पंक्तियों के लेखक को अध्ययन यात्रा के दौरान स्व हिरामन तेली के परिजन भी मिले थे। स्व हिरामन तेली को 6 माह का कारावास और 200 रु जुर्माना हुआ था। जुर्माना की राशि की वसूली के लिए उसकी सायकल, बैल इत्यादि को कुर्क किया गया था किंतु स्वतन्त्रता के बाद इनके वंशजों को कोई सुविधा नहीं मिली। यह परिवार अब खेतिहर मजदूर है। इन्होंने उनके जैसे अन्य ग्यारह परिवार होने की जानकारी दी थी, जिन्हें कुछ नहीं मिला।

संदर्भ –
1 – ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जांच प्रतिवेदन अप्रकाशित
2 – छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह आशीष सिंह
3 – छत्तीसगढ़ के नारी रत्न केयूर भूषण।

आलेख

डॉ.घनाराम साहू,
रायपुर छत्तीसगढ़ी संस्कृति एवं इतिहास के अध्येता


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