(गुप्त नवरात्र के नवम् दिवस – नवम् महाविद्या माँ मातंगी पर सादर समर्पित)
गुप्त नवरात्र के आलोक में दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है। मातंगी देवी को प्रकृति की स्वामिनी देवी बताया गया है। माता मातंगी के कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी आदि। गुप्त नवरात्रि में नवमी तिथि को देवी मातंगी की पूजा और साधना होती है।
दस महाविद्याओं में से एक तारा और मातंग देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में मातंगी को मातागिरी कहते हैं। भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में मातंग समाज के लोग आज भी विद्यमान है। मान्यता अनुसार मातंग समाज, मेघवाल समाज और किरात समाज के लोगों के पूर्वज मातंग (मतंग) ऋषि ही थे। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है जहां हनुमानजी का प्राकट्य हुआ था।
मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। देवी मातंगी गहरे नीले रंग की हैं। देवी मातंगी मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं और मां के 3 ओजपूर्ण नेत्र हैं। माता रत्नों से जड़े सिंहासन पर आसीन हैं। देवी मातंगी के एक हाथ में गुंजा के बीजों की माला है तो दाएं हाथों में वीणा तथा कपाल है तथा बाएं हाथों में खड़ग है। देवी मातंगी अभय मुद्रा में हैं। देवी मातंगी के संग तोता भी है जो वाणी और वाचन का प्रतीक माना जाता है। चार भुजाओं में इन्होंने कपाल (जिसके ऊपर तोता बैठा), वीणा,खड्ग वेद धारण किया है।
मां मातंगी तांत्रिकों की सरस्वती हैं।मतंग भगवान् शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभीष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात् वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनका प्राकट्य होता है। यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही प्रतिमूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।
पलाश और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
यह देवी घर गृहस्थी में आने वाले सभी विघ्नों को हरने वाली हैं, जिसकी शादी ना हो रही हो संतान प्राप्ति पुत्र प्राप्ति के लिए या किसी भी प्रकार का गृहस्थ जीवन की समस्या के दुख हरने के लिए देवी मातंगी की साधना उत्तम है। उनकी कृपा से स्त्रियों का वांछनीय सहयोग मिलना लगता है, चाहे वह स्त्री किसी भी वर्ग की स्त्री क्यों ना हो।
यह सर्वविदित है कि देवी मातंगी, हनुमान जी और शबरी के गुरु मतंग ऋषि की पुत्री थीं। मतंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी। यह देवी भारत के आदिवासियों (जनजातियों) की देवी है।
दस महाविद्याओं में से एक तारा और मातंग देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में मातंगी को मातागिरी कहते हैं। भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में मातंग समाज के लोग आज भी विद्यमान है। मान्यता अनुसार मातंग समाज, मेघवाल समाज और किरात समाज के लोगों के पूर्वज मातंग (मतंग) ऋषि ही थे। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है जहां हनुमानजी का प्राकट्य हुआ था।
महाविद्या मातंगी वाणी, संगीत, ज्ञान और कलाओं को नियंत्रित करती हैं। उनकी पूजा अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त करने, विशेष रूप से शत्रुओं पर नियंत्रण पाने, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने, कलाओं पर महारत हासिल करने और सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त करने के लिए की जाती है।नवम् महाविद्या माँ मांतगी का बीज मंत्र है –
“ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।। ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा।।” माता मातंगी से संबंधित रुद्रावतार मतंगेश्वर रुद्रावतार हैं।