छुरी मनुष्य के दैनिक जीवन का हिस्सा है, सभ्यता के विकास में पाषाण से निर्मित छूरी से प्रारंभ हुआ सफ़र अन्य कठोर वस्तुओं से निर्माण के पश्चात धातुओं की खोज के साथ आगे बढ़ता है। उत्खनन में पाषाण से लेकर ताम्र, लौह एवं अन्य धातुओं की छूरियां प्राप्त होती हैं। भू-गोल की सभी सभ्यताओं में इसकी उपस्थिति मिलती है।
मानव सभ्यता के विकास के दौर से ही छूरी का उपयोग घरेलू कार्यों से लेकर युद्ध एवं आत्मरक्षा में हो रहा है और वर्तमान में भी यह हर घर में उपस्थित है। छत्तीसगढ़ के भोरमदेव शिवालय की भित्तियों का निरीक्षण करते हुए एक प्रतिमा शिल्प में शिरस्त्राणधारी दो योद्धा छूरिका युद्ध कला का प्रदर्शन करते हुए दिखाई दिए। इससे जाहिर होता है कि प्राचीन काल से ही छूरी युद्ध में प्रयुक्त हो रही है।
शास्त्रों में छूरिका अर्थात छूरी को “असिपुत्री” कहा गया है। धनुर्वेद ग्रंथ में युद्ध विद्या का वर्णन है, जिसे चार भागों में बांटा गया है। पहला सैन्य शिक्षा, दूसरा सैन्य अभ्यास, तीसरा अस्त्र शस्त्र निर्माण, चौथा हाथ से चलाने वाले हथियारों का प्रयोग।
धनुषयुद्ध, चक्रयुद्ध, भालायुद्ध, खड़गयुद्ध, छूरिका युद्ध, गदायुद्ध, बाहुयुद्ध आदि युद्धकलाओं का वर्णन इस ग्रंथ में है। एक सैनिक के इन युद्ध कलाओं का अभ्यास अत्यावश्यक होता था। राजस्थान के आमेर दुर्ग के संग्रहालय में मैने छूरिका मंत्र भी देखा था। युद्ध के अतिरिक्त छूरी का उपयोग केशविन्यास के लिए भी किया जाता है।
छूरी का प्रयोग शिकार आदि करने के लिए प्रथमत: हुआ, इसके उपरांत युद्ध एवं केश विन्यास के लिए। क्योंकि मनुष्य के लिए भोजन प्राथमिक है। अथर्ववेद में इसके लिए एक पूरा मंत्र ही प्राप्त होता है, छूरिका को क्षुर कहा गया है छूरिका लकड़ी एवं धातू दोनों से निर्मित होती थी।
गुह्यसुत्रों में ताम्र एवं लोहछूरिका उल्लेख मिलता है। इनमें सवित्र द्वारा वरुण की दाढी साफ़ करने के उल्लेख ऐसी ही छूरिका से मिलता है। इस प्रकार धातृ वृहस्पति द्वारा इंद्र की दाढी साफ़ करने का भी उल्लेख मिलता है। ॠग्वेद में वप्त शब्द संभवत: नापित का ही संकेत देता है।
चिकित्सा विज्ञान के विकास के साथ शल्य क्रिया में छूरी का प्रयोग होने लगा। सुश्रुत के काल में शल्य क्रिया के लिए विभिन्न तरह की छूरियों का वर्णन प्राप्त होता है। सुश्रुत काल में अन्वेषित छूरियों का प्रयोग वर्तमान की आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी निरंतर जाती है।
छूरी का पुल्लिंग छूरा भी होता है, छूरा शब्द से ही प्रतिध्वनि होती है कि यह छूरी से अधिक मजबूत एवं बड़ा होता है। शास्त्रों में जिस तरह छूरी को “असिपुत्री” कहा गया है, उसी तरह हम छूरे को “खड़ग़पुत्र” कह सकते हैं।
इस तरह ये मानकर चल सकते हैं कि छूरिका शस्त्र मानव के लिए बहुपयोगी यंत्र का कार्य प्राचीन काल से ही करता रहा है। जिसकी उपयोगिता इस भौतिक सभ्यता के दौर में भी बनी हुई है।
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