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केरापानी की रानी माई : नवरात्रि विशेष

आदिशक्ति जगदंबा भवानी माता भिन्न-भिन्न नाम रूपों में विभिन्न स्थानों पर विराजित हैं। छत्तीसगढ़ में माता की विशेष कृपा है। यहां माता रानी बमलाई, चंद्रहासिनी, महामाया, बिलाई माता, मावली दाई के रूप में भक्तों की पीड़ा हरती है। ऐसा ही करूणामयी एक रूप रानी माता के नाम से विख्यात है।

रानी माता का दरबार ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मध्य स्थित मलयगिरी पर्वत श्रृंखला पर अवस्थित है। स्थानीय लोग इसे मलेवा डोंगरी कहते है। ये पहाड़ी ओडिशा की सीमा रेखा तय करती है और छत्तीसगढ़ को स्पर्श करती है।

इतिहास का विवेचन करने पर ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में दक्षिण कोसल का अभिन्न हिस्सा था। इसी पहाड़ी पर सोनाबेडा नामक स्थान हैं, जो भव्य दशहरे के लिए विख्यात है। साथ ही इस सोनाबेडा का संबंध भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति से भी है। वर्तमान में ये क्षेत्र ओडिशा राज्यांतर्गत आता है। रानी माता का दरबार छत्तीसगढ़ की सीमा वाले हिस्से में है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 100 किमी की दूरी पर गरियाबंद जिलांतर्गत है छूरा विकासखंड मुख्यालय है। छूरा से लगभग 17 किमी की दूरी पर है रसेला गांव, यहाँ से पड़ोसी राज्य ओडिशा की दूरी मात्र दस बारह किमी रह जाती है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण रसेला समेत के आसपास के गांवों में उत्कल संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यहां लोग छत्तीसगढ़ी, हिंदी और ओडिया भाषा बोलते हैं।

रसेला से लगभग-लगभग 7 किमी की दूरी पर मुढीपानी गांव है, यहाँ से रानी माता स्थल तक जाने का मार्ग बना हुआ है। जनजातीय बाहुल्य मुढीपानी ग्राम पंचायत अंतर्गत कमार, भुंजिया, कंवर और गोंड जनजाति वर्ग के लोग बड़ी संख्या में निवास करते है।

रानी माता के दरबार तक पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुर्गम है। पूर्णतः प्राकृतिक रूप में है यहां का रास्ता। बीहड़ वन और चट्टानों को पार करके जाना पड़ता है। जंगली जानवरों का भी भय बना रहता है। संभवतः इसी कारण ज्यादातर लोग समूह में जाते हैं। ऊपर पहाड़ी पर माता के स्वरूप का अंकन एक शिला पर किया गया है। साल 2015 तक वहां मंदिर आदि का निर्माण नहीं हुआ था। ज्योति कक्ष का निर्माण कार्य आरंभिक अवस्था में था।

ज्ञात होता है कि वर्तमान में ज्योति कक्ष का निर्माण पूर्ण हो गया है। जब ज्योतिकक्ष नहीं बना था तब पालीथीन और तिरपाल आदि की मदद से अस्थायी ज्योतिकक्ष का निर्माण किया जाता था। वहां का दृश्य अत्यंत मनोरम है। माता मंदिर में विराजित नहीं है, आज भी मूल रूप में भक्तों को दर्शन लाभ दे रही है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। बिजली आदि का भी प्रबंध नहीं है। नवरात्र पर्व में मशाल और सोलर लैंप के माध्यम से रौशनी की जाती है। सिर्फ नवरात्र पर्व में ही लोग वहां रहते हैं। साल के बाकि महीनों में यह स्थान प्रायः निर्जन होता है।

छुरा विकास खंड अंतर्गत स्थित एक अन्य देवी तीर्थ रमईपाट सोरिद में स्थित मां रमईपाट धाम में आम वृक्ष के नीचे से प्राकृतिक जलधारा निकलती है। ठीक वैसी ही जलधारा यहां जंगली कदली (केले) के पेड़ से निकलती है। इसी कारण रानी माता का ये प्राकट्य स्थल केरापानी के नाम से जाना जाता है।

इस पहाड़ी पर भालू, बुंदीबाघ, वनभैंसे जैसे जानवर बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं और विभिन्न प्रकार की वनौषधियाँ भी यहां मिलती है। जानकार लोग बताते हैं कि यहां बहुत सी आयुर्वेद में काम आने वाली जड़ी बूटियां मिलती है।

साल 1996-97 के आसपास यहां पहली बार ज्योतिकलश स्थापित किया गया था। आसपास के सात ग्राम पंचायत क्षेत्र के निवासी रानी माता समिति के सदस्य हैं। जिनके कुशल मार्गदर्शन में समस्त कार्य संपादित होते हैं। इस विधानसभा क्षेत्र (बिन्द्रानवागढ़) के भूतपूर्व विधायक श्री ओंकार शाह के द्वारा पहाड़ी के रास्ते पर श्री हनुमानजी की विशाल मूर्ति स्थापित की गया है।

माता के प्राकट्य संबंधित कथा है कि किसी समय गांव मुढीपानी के एक कमार जनजाति के व्यक्ति को रानी मां ने स्वप्न में आकर अपने केरापानी स्थल में स्थित होने की बात बताई। तत्पश्चात उस व्यक्ति ने गांव के वरिष्ठ जनों के समक्ष स्वप्न की बात रखी। सभी लोगों ने मां की कृपा को स्वीकारा और रानी माता की पूजा-अर्चना की शुरुआत हुई।

एक विशेष बात ये है कि नवरात्र में पंडा (प्रधान पुजारी) का कार्य हमेशा कमार जनजाति के व्यक्ति द्वारा किया जाता है। माता के विभिन्न चमत्कारों की कहानियाँ स्थानीय लोगों के द्वारा बताई जाती है। लोगों की मनोकामना इस दरबार में पूर्ण होती है, ऐसा क्षेत्र के लोगों का मानना है।

आलेख

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा) जिला, गरियाबंद

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